Friday, December 3, 2021

गुनाह

ज़िक्र सिर्फ और सिर्फ तेरा ही आया बार बार I
मेरे हर गुनाह में तेरा ही नाम आया हर बार II

तितलियाँ जो उड़ाई थी तूने रंगीन फ़सनों की I
आगाज़ वो कभी बनी नहीं इनके अरमानों की II

पँख खोल परवाज़ भर उड़ जाने बेताब इन परिंदों को I
आसमाँ वो मिला नहीं कबूल करले जो इन परवानों को I 

ना जाने कैसे बिन पते का बंद तेरा वो खत I
मोहर सा लिफाफे से चिपका गया मेरा मन II

तेरी पर्दानशीं आँखों के उस सम्मोहन भरे जादू से I
अछूता रह ना पाया गुनाह अंजाम अदा करने से II

खामोशीयों पे मेरी पहरे लगे थे तेरी यादों के सभी I
तेरे फैसले में रजा मेरी भी थी तेरे लिए ही शामिल II

परत दर परत ताबीर गुनाह की ज्यों ज्यों खुलती गयी I
इस गुनाह रिश्ते की चर्चा सरेआम होती चली गयी II

13 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-१२ -२०२१) को
    'हताश मन की व्यथा'(चर्चा अंक-४२६८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आदरणीया अनीता दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
      आभार

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  2. वाह बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. आदरणीया मनीषा दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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    1. आदरणीय सुशील भाई साहब
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  4. आदरणीया ज्योति दीदी जी
    सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
    सादर

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. आदरणीया भारती दीदी जी
      सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
      सादर

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  6. आदरणीया अभिलाषा दीदी जी
    सुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
    सादर

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  7. लिफ़ाफ़े की मुहर का ख़याल बङा प्यारा लगा ।

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    1. आदरणीय नूपुरं जी
      सुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
      सादर

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  8. भाई मनोज ! आपकी बहुत सी नज़्मे पढ़ी और पढता ही चला गया। मुझे खुद से शिकायत है कि ये सब मैंने पहले क्यों नहीं पढ़ी। आपकी रचना " गुनाह " पढ़ी तो तटस्थ रहना भूल गया। दिल आफरीन ! आफ़री !! बोल उठा और मैं अपनी प्रतिक्रिया लिखने व्याकुल हो गया। हर अशआर मन को कहीं अंदर तक छू जाता है। तितलियों के अरमान , परवानो की परवाज़ लाजवाब प्रस्तुति हैं और इनका सिरमौर शेर मिला बिन पते के खत पर मोहर सा चिपका वो लिफाफा। बहुत खूब , मनोज जी !
    ना जाने पुरानी प्रविष्टियों पर आप टिपण्णी पढ़ते हैं या नहीं , भविष्य में आपकी नज़्मों पर नज़र रखूंगा। अशेष शुभ कामनाएं !

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