ज़िक्र सिर्फ और सिर्फ तेरा ही आया बार बार I
मेरे हर गुनाह में तेरा ही नाम आया हर बार II
तितलियाँ जो उड़ाई थी तूने रंगीन फ़सनों की I
आगाज़ वो कभी बनी नहीं इनके अरमानों की II
पँख खोल परवाज़ भर उड़ जाने बेताब इन परिंदों को I
आसमाँ वो मिला नहीं कबूल करले जो इन परवानों को I
ना जाने कैसे बिन पते का बंद तेरा वो खत I
मोहर सा लिफाफे से चिपका गया मेरा मन II
तेरी पर्दानशीं आँखों के उस सम्मोहन भरे जादू से I
अछूता रह ना पाया गुनाह अंजाम अदा करने से II
खामोशीयों पे मेरी पहरे लगे थे तेरी यादों के सभी I
तेरे फैसले में रजा मेरी भी थी तेरे लिए ही शामिल II
परत दर परत ताबीर गुनाह की ज्यों ज्यों खुलती गयी I
इस गुनाह रिश्ते की चर्चा सरेआम होती चली गयी II
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-१२ -२०२१) को
'हताश मन की व्यथा'(चर्चा अंक-४२६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
वाह बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदरणीया मनीषा दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साहब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
आदरणीया ज्योति दीदी जी
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदरणीया भारती दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
आदरणीया अभिलाषा दीदी जी
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
लिफ़ाफ़े की मुहर का ख़याल बङा प्यारा लगा ।
ReplyDeleteआदरणीय नूपुरं जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
भाई मनोज ! आपकी बहुत सी नज़्मे पढ़ी और पढता ही चला गया। मुझे खुद से शिकायत है कि ये सब मैंने पहले क्यों नहीं पढ़ी। आपकी रचना " गुनाह " पढ़ी तो तटस्थ रहना भूल गया। दिल आफरीन ! आफ़री !! बोल उठा और मैं अपनी प्रतिक्रिया लिखने व्याकुल हो गया। हर अशआर मन को कहीं अंदर तक छू जाता है। तितलियों के अरमान , परवानो की परवाज़ लाजवाब प्रस्तुति हैं और इनका सिरमौर शेर मिला बिन पते के खत पर मोहर सा चिपका वो लिफाफा। बहुत खूब , मनोज जी !
ReplyDeleteना जाने पुरानी प्रविष्टियों पर आप टिपण्णी पढ़ते हैं या नहीं , भविष्य में आपकी नज़्मों पर नज़र रखूंगा। अशेष शुभ कामनाएं !