निकला बेचने रूह को जिस्म के जिस बाजार l
बिन सौदागर मौल हुआ नहीं उस सरे बाजार ll
अंतर्द्वंद विपासना जलाती रही चिता कई एक साथ l
पर हर कतरे में पाषाण सी थी इस रूह की रुई राख ll
मंडी तराजू के उसके बदलते मंजर के आगे l
भाव शून्य सी कोने में थी काया खड़ी सकुचाय ll
दीवार थी शीशे की पूरी गर्त से ढकी हुई l
अंधकार की छाया थी दूजी और खड़ी ll
पैबंद में लिपटी रूह की यह स्याह घडी l
बाट जो रही यह बिकने नजरों की गली ll
विच्छेद दास्तानों भँवर में भटकी अटकी रातों की l
फेहरिस्त दीवानों की इसकी जुदा औरों से थी ll
आज इस महफ़िल में तन्हा थी रूह अकेली l
कद्रदान कोई आया नहीं जीने इसे इस कोठी ll
जिस्म की मंडी में नीलाम हो ना पायी l
इस रूह की बिलखती यह अंतर्ध्वनि ll
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(११-११-२०२१) को
'अंतर्ध्वनि'(चर्चा अंक-४२४५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
हृदयस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ॥
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
बहुत ही मार्मिक व हृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार भाई साहब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
अंतर्द्वंद विपासना जलाती रही चिता कई एक साथ
ReplyDeleteपर हर कतरे में पाषाण सी थी इस रूह की रुई राख।
शानदार , बेमिसाल।
👌👌
आदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
मार्मिक रचना
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteआदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर