शिद्धत से तलाशता फिरा जिस सकून को l
मुद्दतों बाद थपकी
दे सुला गया
जो मुझको ll
सनक थी इसके
दुलार के उस मीठी खनकार की l
नींदों के आगोश
में लोरी सुना सुला
गयी जो मुझको ll
अस्तित्व ख्वाबों की उन
बिछडी खोई नींदो का
l
वज़ूद ढूंढ रही अपना पलकों में ढलती
रातों का ll
दस्तक थी उन
उनींदी उनींदी दरख़ास्तों की
l
दस्तखत दे गयी
पलकों पे जो
अपने नामों की
ll
मुनासिब थी वर्षों से जगी इन पलकों
की भी रजामंदी
l
झपकी इसकी पल में दे
गयी जीवन भर
की मस्ती ll
लयवद्ध हो गया मेरा सम्पूर्ण सपनों का शहर l
पहलू में नीँदों की आ मिला जो मुझसे बिछड़ा पहर ll
मग्न हो गयी पलकों बीच आँखे इस कदर l
बेखबर बेसुध हो सो गयी सपनों की डगर ll