टेलीफोन नंबर उनका नहीं मेरे मोबाइल में l
डायल करता हूँ जब कहीं ओर किसी ओर को ll
ना जाने कैसे बार बार रोंग नंबर डायल हो l
फ़ोन फिर उस कायनात को ही लग जाता हैं ll
तस्वीर उसकी इस जेहन से हटती ही नहीं l
यादें भी उसकी इस चिलमन से जाती नहीं ll
कुदरत ने भी जाने कैसा स्वांग रचा रखा हैं l
काफ़िर बना मुझको ही बदनाम कर रखा हैं ll
सुन उसकी आवाज़ बैचैन हो मैं बुत सा बन जाता हूँ l
असहज हो अपने खामोश लबों से दूर चला जाता हूँ ll
फ़ोन कट जाने के बाद भी घंटों पागलों की तरह l
उसे कानों से लगा आवाज़ उसकी सुना करता हूँ ll
आखिर समीकरण यह इतना उलझा उलझा सा क्यों हैं l
मेरी टेलीफोन डायरी में उनका नंबर छिपा किधर को हैं ll
सदियों जिससे स्वप्न में भी हुई नहीं कोई मुलाक़ात l
रोंग नंबर डायल हो क्यों फ़ोन उसका ही लग जाता हैं ll
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteआदरणीया मनीषा दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
एहसासों में डूबा उम्दा सृजन।
ReplyDeleteसुंदर।
आदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीया अनुराधा दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणा दायक शब्दों से होंसला अफजाई के तहे दिल से आपका शुक्रिया
सादर
उम्दा 👍
ReplyDeleteआदरणीय संजय भाई साहब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर