Thursday, October 28, 2021

चाँद और इश्क़

देखा हैं चाँद को चुपके से अकेले में मुस्काते हुए l  
रूप बदल बदल चाँदनी को इसकी इतराते हुए ll

दीवाने हुए हम भी उस चौदहवीं के चाँद के l
ज़माना आतुर जिसके एक दीदार के लिए ll

फलक तलक गूँज रही इसकी ही गूँज हैं l
अर्ध चाँद का अक्स इश्क़ का ही नूर हैं ll

ग्रहण लगे चाँद की छाया, जब से देखि पानी में l 
मोहब्बत हो गयी तबसे इसके काले काले तिल से ll

दिल लगा जब से इसके दिलजले ख्वाबों से l
तन्हा रह गए हम भरी सितारों की महफ़िल में ll

जोरों से दिल हमारा भी खिलखिला उठा तब l
पकड़ा गया चाँद जब चोरी चोरी निहारते हुए ll

रुखसार से अपने बेपर्दा होते हुए देखा है हमने l
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए ll

चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए l
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए ll

Wednesday, October 20, 2021

पदचाप

बारिश में उसके पदचापों की सुर ताल l
खनक रही जैसे अशर्फियों की तान ll

उतावले बादल आतुर घटाओं के साथ l 
रुनझुन रुनझुन बरसा रहे मेघों अंदाज़ ll

उलझता चला गया छोटा सा दिल ए बेक़रार l 
देख उसकी भींगी भींगी सुलझी सुलझी चाल ll  

जुल्फों से उसके टपकती पानी की लार l
जी चुरा ले गयी हौले से होठों के अल्फ़ाज़ ll

मयूर मन नाचते उनके क़दमों की आवाज़ l
घोल रही बारिश में पाजेब की मीठी झंकार ll

तरंग सी इठला रही इस बारिश की बूँदे कुछ खास l 
मिल सिमट रही उनकी झुकी पलकें जब आस पास ll 

बारिश में उसके पदचापों की सुर ताल l
खनका रही इस रूमानी रूह के सुर ताल ll

खनका रही इस रूमानी रूह के सुर ताल l
खनका रही इस रूमानी रूह के सुर ताल ll
 

Wednesday, October 13, 2021

टेलीफोन

टेलीफोन नंबर उनका नहीं मेरे मोबाइल में l
डायल करता हूँ जब कहीं ओर किसी ओर को ll 

ना जाने कैसे बार बार रोंग नंबर डायल हो l
फ़ोन फिर उस कायनात को ही लग जाता हैं ll    

तस्वीर उसकी इस जेहन से हटती ही नहीं l
यादें भी उसकी इस चिलमन से जाती नहीं ll 

कुदरत ने भी जाने कैसा स्वांग रचा रखा हैं l
काफ़िर बना मुझको ही बदनाम कर रखा हैं ll

सुन उसकी आवाज़ बैचैन हो मैं बुत सा बन जाता हूँ l 
असहज हो अपने खामोश लबों से दूर चला जाता हूँ ll 

फ़ोन कट जाने के बाद भी घंटों पागलों की तरह l
उसे कानों से लगा आवाज़ उसकी सुना करता हूँ ll 

आखिर समीकरण यह इतना उलझा उलझा सा क्यों हैं l
मेरी टेलीफोन डायरी में उनका नंबर छिपा किधर को हैं ll 

सदियों जिससे स्वप्न में भी हुई नहीं कोई मुलाक़ात l 
रोंग नंबर डायल हो क्यों फ़ोन उसका ही लग जाता हैं ll

Sunday, October 10, 2021

कयास

अर्सा एक लम्बा गुजर गया उनसे मुखातिब हुए l
महताब वो भी कभी पिघला होगा दीदार के लिए ll

रंगीन यादों की अज़ीज़ ख्यालातों दर्पण में l
टकरा गए वो एक रोज नदी के उस मुहाने पे ll 

अक्सर मिला करते थे चाँद चकोर जिस किनारे पर l 
लिखने नाम अपना पानी की उन मचलती दीवारों पर ll

छुपी थी हया रुखसार की उन सुहानी वादियों में l
बादलों की ओट से झाँकती शबनमी आँखों में ll

हलकी हलकी मधुर दिल की वो चितवन सी आवाज़ें l
रूहानियत बरसाया करती थी जो उन रूहानी रातों में ll 

यूँ अचानक यादों में उनका फिर से आ बस जाना l
खोल झरोखें परछाई बन उनका फिर उतर आना ll 

कयास ना था अहसास मीठा सा इतना अपने पास था l 
फासलों में भी अहसास फासलों का दूर तलक ना था ll

अर्सा एक लम्बा गुजर गया उनसे मुखातिब हुए l
महताब वो भी कभी पिघला होगा दीदार के लिए ll