देखा हैं चाँद को चुपके से अकेले में मुस्काते हुए l
रूप बदल बदल चाँदनी को इसकी इतराते हुए ll
दीवाने हुए हम भी उस चौदहवीं के चाँद के l
ज़माना आतुर जिसके एक दीदार के लिए ll
फलक तलक गूँज रही इसकी ही गूँज हैं l
अर्ध चाँद का अक्स इश्क़ का ही नूर हैं ll
ग्रहण लगे चाँद की छाया, जब से देखि पानी में l
मोहब्बत हो गयी तबसे इसके काले काले तिल से ll
दिल लगा जब से इसके दिलजले ख्वाबों से l
तन्हा रह गए हम भरी सितारों की महफ़िल में ll
जोरों से दिल हमारा भी खिलखिला उठा तब l
पकड़ा गया चाँद जब चोरी चोरी निहारते हुए ll
रुखसार से अपने बेपर्दा होते हुए देखा है हमने l
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए ll
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए l
चाँद को चुपके चुपके अकेले में मुस्कराते हुए ll