बदल गयी वो सारी गुलज़ार गालियाँ आज l
मशहूर थी इश्क़ चर्चे से जो कभी सरेआम ll
दीमक लग गयी उन यादोँ की रंगत को आज l
बहा ले गयी थी अश्क जिसे कभी अपने साथ ll
वीरान अकेला आज उस मकान का वो आलिंद l
कभी जिसके नूर से चमकती इसकी न्यारी बाती ll
अब ना हवाओं में वो मर्ज ना लबों पे उन लफ्जों का साथ l
वास्ता जिनकी तारुफ़ का गुज़रा था जिन गलियों के पास ll
मेला जमघट लगा था कभी दिलजलों का जहाँ l
दास्ताँ कहने को बचा रहा नहीं वहाँ कोई निशाँ ll
ढह गया उजड़ा खंडहर बदलते वक़्त के साथ l
दीमक लगा गया सहेजी पुरानी यादों के पास ll
दीमक लगा गया सहेजी पुरानी यादों के पास l
दीमक लगा गया सहेजी पुरानी यादों के पास ll
अच्छा सृजन है
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
वाह ..
ReplyDeleteखूबसूरत शेर ...
अच्छे से बाँधा है आपने शेरो में कुछ बातों को ...
आदरणीय दिगंबर भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(११-०९-२०२१) को
'मेघ के स्पर्धा'(चर्चा अंक-४१८४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
उम्मीद करते हैं आप अच्छे होंगे
ReplyDeleteहमारी नयी पोर्टल Pub Dials में आपका स्वागत हैं
आप इसमें अपनी प्रोफाइल बिना किसी लगत के बनके अपनी कविता , कहानी प्रकाशित कर सकते हैं, फ्रेंड बना सकते हैं, एक दूसरे की पोस्ट पे कमेंट भी कर सकते हैं,
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जी शुक्रिया
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय । बहुत बधाइयाँ ।
ReplyDeleteआदरणीय दीपक भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन