हल्के हल्के पदचापों की आहटें l
थिरका रही बावरे मन की आयतें ll
दस्तक दे रही उस परिंदे घरोंदों को l
आ ढहा जा इस एकाकी दीवारों को ll
कटे पर बेताब हूँ परवाज़ भर जाने को l
आतुर हूँ छूने अम्बर के उन बादलों को ll
सूख ना जाए पानी कहीं इन बरसातों के l
लिपट अंग भिगों दे आँचल अरमानों के ll
हिज़्र में जिसकी कितनी सदियाँ गुज़र गयी l
मुलाक़ात उस खुदा से एक मुकम्मल हो जाये ll
संग तारुफ़ उनके मिज़ाज़ की शरीक ऐसी रहे l
इत्तेफाकन ही मिल जाये वो इस अंजुमन में ll
आवाज़ दे रही एकाकी पिंजरें की दरों दीवारें l
बसेरा बन बस जाये उनकी यादों के साये ll
आदरणीया कामिनी दीदी जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।
ReplyDeleteआदरणीय दीपक भाई साहब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
बहुत सुंदर आशावादी रचना ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
शानदार लेखन, सुंदर सृजन।
ReplyDeleteआदरणीय संदीप भाई साहब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर
वाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteउम्दा ग़ज़ल।
आदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों से उत्साहित करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार....
सादर