उनींदी आँखों लिखने बैठा तेरी सहर की कली l
नज़्म ढलती गयी खुद ही नज़र की इस कली ll
जादू कर गयी तेरे ताबीज़ की वो कच्ची डोरी l
बंधी थी जिससे तेरे संग मेरे रूह की डोरी ll
सुन तेरे पाक इबादत के नूरों को इस घड़ी l
सिमट मिटते गयी हर फासलों की ये घड़ी ll
ओश शोखियाँ सी इठलाती नाज़ुक तू तितली l
शिकायतें जो उड़ा ले गयी ग़ज़ल की इस गली ll
खुमारी लगी दिल्लगी एक मासूम सी कली l
तालीम आलम छा गयी पलकों पे दिलकशी ll
रंगत बरस रही लफ्जों से अजान सी मीठी l
खोये अल्फ़ाज़ों से जुड़ गयी लबों की खुशी ll
लिखने बैठा तेरी सहर सफर की इस गली l
उनींदी आँखे खुली तेरे ही नयनों की गली ll
उनींदी नहीं होना चाहिए क्या? सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साहब
Deleteमेरी रचना को शुद्ध करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, अभी इसे सही करता हूँ, आगे भी इसी तरह मार्गदर्शन करते रहे l
सादर
आदरणीया यशोदा दीदी जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-9-21) को "हिन्द की शान है हिन्दी हिंदी"(4187) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
रंगत बरस रही लफ्जों से अजान सी मीठी l
ReplyDeleteखोये अल्फ़ाज़ों से जुड़ गयी लबों की खुशी ll
लिखने बैठा तेरी सहर सफर की इस गली l
उनींदी आँखे खुली तेरे ही नयनों की गली ll गहनतम
आदरणीय संदीप भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
वाह!बहुत सुंदर अनुज।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौशला अफजाई के लिए तहे दिल से आपका आभार
सुन्दर नज़्म!
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