ज़िक्र एक उसका ही था मेरे जनाजे में l
सौदा दिल से कफ़न का कर आयी थी जो ll
सौगात आँसुओं को मिट्टी के दे आयी थी जो l
तालुक उस पर्दानशीं से इस काफिर का ना हो ll
कोई मीठा झोंका थी या किसी फरेब का साया l
हसीन सी दास्तां थी उसकी नज़रों का साया ll
उधार थी क़िश्तें बहुत उस नूर शबनम की l
महरूम थी उसकी एक झलक से मेरी काया ll
तकरीर रंगीन थी उसके ताबीज़ के गुल से l
तहरीर सजी थी जैसे उसके जन्नत गुल से ll
मशरूफ रूह उस खाब्ब में खोई थी इस कदर l
निगाहें शगुन पैमाना बन गयी थी उस वक़त ll
फक्कत वो ऐसी गहरी नींद सुला गयी मुझको l
वजूद काया ताबूत में सिमटा गयी मुझको ll
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 08 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया
Deleteयशोदा दीदी जी
मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिये तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ l
आभार
गजब , शानदार लेखन हर शेर हृदय स्पर्शी।
ReplyDeleteआदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौशला अफजाई के लिए तहे दिल से आपका आभार
सादर
उधार थी क़िश्तें बहुत उस नूर शबनम की l
ReplyDeleteमहरूम थी उसकी एक झलक से मेरी काया ll
बहुत ही सुन्दर.... हृदयस्पर्शी सृजन।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौशला अफजाई के लिए तहे दिल से आपका आभार
सादर
आदरणीय सुशील भाई साब
ReplyDeleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
बहुत सुन्दर बहुत सराहनीय | शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
बहुत खूब
ReplyDeleteआदरणीया उषा दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौशला अफजाई के लिए तहे दिल से आपका आभार
सादर
कोई मीठा झोंका थी या किसी फरेब का साया l
ReplyDeleteहसीन सी दास्तां थी उसकी नज़रों का साया ll
उधार थी क़िश्तें बहुत उस नूर शबनम की l
महरूम थी उसकी एक झलक से मेरी काया ll
बहुत खूब!
आदरणीया कविता दीदी जी
Deleteसुन्दर शब्दों से हौशला अफजाई के लिए तहे दिल से आपका आभार
सादर