रुसवा हो वो जो छोड़ गए थे बीच मझधार I
पिरोयें थे ताजमहल के जो सुनहरी खाब्ब II
कैसे फिर यह दिल सिर्फ किसी एक को चाहे I
रंजिशें कर ली जब अरमानों ने खुद के साथ II
चाँद भी इस डगर हो गया खुद से बेनक़ाब I
टूट बिखरा गया तारें का रूमानी मेहताब II
रंगे थे आसमां जिनकी ग़ज़लों से सुबह शाम I
नाम कर गयी वो इन्हें किसी काफिर के नाम II
तन्हा छोड़ रूह उसकी चले जाने के बाद I
दिल हो गया ए तवायफ़ के घराने समान II
महरूम हो गयी वादियाँ एक वीराने के साथ I
मशगूल रह गयी सिर्फ यादें बदनामी के साथ II
फिक्र अब ना थी इस दिल की दिल के पास I
दफ़न हो गया मकबरे के ताबूत में समाय II
अति सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय गगन भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
वाह!बेहतरीन अनुज 👌
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
बहुत बहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
क्या खूब कहा है । बहुत ही बढ़िया ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
तन्हा छोड़ रूह उसकी चले जाने के बाद I
ReplyDeleteदिल हो गया ए तवायफ़ के घराने समान II ,,,,,,,,,,।बहुत सुंदर आप की रचनाएँ बहुत ही बेहतरीन होती है आदरणीय शुभकामनाएँ ।
आदरणीया मधुलिका दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन