आईना हमने भी देखा हैं करीब से गुजरते हुए
तेरी हुस्न तपिश में जल मोम सा पिघलते हुए
वाकिफ़ ज़माना रहा परदानशीन तेरे हुस्नों अंदाज़ से
नज़रें मिलायी हटा हिज़ाब सिर्फ तूने दर्पण यार से
आये तुम जब कभी इस अंजुमन की छावं में
चाँद ईद का निकल आया जैसे अमवास रात में
रंगीन चूड़ियाँ काँच की मिली जब काँच से
चटक गयी कोर आईने की तेरी झंकार से
सिर्फ तेरा ही चेहरा नज़र आया आईने को
अपने बदले बदले हुए दर्पण अक्स राग में
टूट बिखरा आईना जब छोटी छोटी धार में
तस्वीर तेरी ही उभरी तब भी इसके आगाज़ में
बहुत ही बढ़िया कहा । उम्दा लेखन ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०५-०८-२०२१) को
'बेटियों के लिए..'(चर्चा अंक- ४१४७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपको नमन
बढ़िया
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
वाह!! लाजवाब..
ReplyDeleteटूट बिखरा आईना जब छोटी छोटी धार में ।
आदरणीया पम्मी दीदी जी
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
सिर्फ तेरा ही चेहरा नज़र आया आईने को
ReplyDeleteअपने बदले बदले हुए दर्पण अक्स राग में---बहुत खूब...। वाह
आदरणीय संदीप भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
बहुत खूब ..
ReplyDeleteइस बदलते आईने से क्या पूछें सच कहता है के फरेब ...
जो कहता है सच तो वाही होता है ...
अच्छे शेर हैं ...
आदरणीय दिगम्बर भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई साब
Deleteसुन्दर प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपको नमन