खामोशियाँ कह गयी लब कह ना पाए जो बात l
लफ्ज अल्फाज बिखर उठे पा कायनात को पास ll
खत नयनों के छलक पढ़ने लगे कलमों के अंदाज़ l
गूँज उठी अजान साँझ की लिए कई सिंदूरी पैगाम ll
लज्जा रही पलकें सुर्ख हो रहे उसके गुलाबी गाल l
दूर क्षितिज पर भी चमक रहा उसका ही आफ़ताब ll
तहरीर थी दिल अंजुमन में ताबीर जिसकी चाह l
जुस्तजू मयसर हो गयी रूह रूहानी आगोश समाय ll
लहजा तकरीरें दे गयी सौगात एक दूजे के नाम l
परदे में भी बेपर्दा हो गए उनके नूरों के साज ll
सँभाला था जिस नफासत को नजाकत की तरह l
नज़राना मेहर हो गयी वो दिल रिवायतों की तरह ll
संजीदा थे इस पनघट की बोलियों के पैगाम l
निसार हो उठी शोखियाँ देख चाँदनी इठलाय ll
खामोशियाँ कह गयी लब कह ना पाए जो बात l
लफ्ज अल्फाज बिखर उठे पा कायनात को पास ll
वाह!!! बहुत उम्दा!!!
ReplyDeleteआदरणीय विश्वमोहन जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(4-7-21) को "बच्चों की ऊंगली थामें, कल्पनालोक ले चलें" (चर्चा अंक- 4115) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
सादर
बहुत सुंदर ग़ज़लनुमा कविता! ये पंक्तियां अच्छी लगीं:
ReplyDeleteसँभाला था जिस नफासत को नजाकत की तरह l
नज़राना मेहर हो गयी वो दिल रिवायतों की तरह ll
साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनिता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
बहुत बहुत सुन्दर सरस गजल |
ReplyDeleteआदरणीय आलोक भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बेहतरीन , सुंदर साजो श्रृंगार है रचना में ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
आदरणीया दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
आदरणीय शिवम् भाई जी
ReplyDeleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
भावपूर्ण अभिव्यक्ति …
ReplyDeleteआदरणीय दिगम्बर भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बेहतरीन लफ्ज़ ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर