अजीब सा सकून था झोपड़े के उस खंडहर में l
बिछौने आँचल पसरा देती माँ रोता मैं जब डर के ll
सिरह जाता कौंधने बिजली कभी आधी रातों में l
सीने से दुबका नींदों में सुला देते थे तब बाबा भी ll
एक अदद टूटी लालटेन ही रोशनी का सहारा थी l
अँधियारे से लड़ती इसकी कमजोर लौ बेसहारा थी ll
टपकती छत अँगीठी अक्सर बुझा जाती थी l
माँ फिर भी साँसे फूँक इसको सुलगा लाती थी ll
मेरे लिए खाट जो बुनी थी बाबा ने अपनी धोती से l
थपकी की थाप लौरी की गूँज छाप दोनों थी उसमें ll
माँ की उस रसोई से भी दुलार ऐसा बरस आता था l
सूखी रोटी नमक में भी मक्खन स्वाद का आता था ll
मोहताज़ थी वो झोपड़ी खंडहर एक दरवाज़े के लिए l
फिर भी कोई कमी ना थी माँ बाबा के उस क्षत्रशाल में ll
महसूस हुई ना कभी कोई कमी इसकी धूप छाँव में l
अजीब सा सकून था उस झोपड़े की दरों दीवार में ll
मिल जाये वो ही सकून एक बार फिर से l
रो दिया लिपट यादों की उस तस्वीर से ll
बहुत सुन्दर ह्रदय स्पर्शी सृजन - - शुभकामनाओं सह।
ReplyDeleteआदरणीय शांतनू भाई जी
ReplyDeleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
सुन्दर भाव....
ReplyDeleteआदरणीय प्रसन्नवदन भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
वाह...👌
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
वाह
ReplyDeleteआदरणीय सुशील भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
अजीब सा सकून था झोपड़े के उस खंडहर में l
ReplyDeleteबिछौने आँचल पसरा देती माँ रोता मैं जब डर के ll
बहुत बढिया प्रिय मनोज जी | बचपन की सुहानी यादों को बहुत खूबसूरती से शब्दांकित किया है आपने |पूरी रचना विपन्नता पर प्रेम की जीत का आभास देती है | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको | आपके लेखन का माधुर्य बसबस बांध लेता है |
आदरणीया रेणु दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
मर्मस्पर्शी सृजन ,सच वो निस्वार्थ प्रेम अमूल्य है ।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
आदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
माँ बाबा की यादें ऐसे ही विह्वलित कर जाती हैं ।मर्मस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteआदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
बहुत मार्मिक ह्रदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव!
ReplyDelete