Thursday, July 1, 2021

दर्पण जैसा

सोचा लम्हा एक चुरा लूँ उन हसीन खाब्बों के पल से l
फिसल गए वो हुनर ना आया मुट्ठी को इस पल में ll

वजूद मेरे किरदार का भी कुछ उस दर्पण जैसा l
अक्स निहार छोड़ गए जिसे हर कोई अकेला ll

पिंजरे बंद परिंदा हूँ उन सुनहरे अरमानों का l
पंख मिले नहीं जिसे कभी उन आसमानों का ll   

छू आँचल निकल गयी वो पवन वेग हठेली भी l
गुलशन फिजायें महकी थी कभी जिस गली भी ll

फासला सिमटा नहीं इन हथेली लकीरों का कभी l
अजनबी बन गया दामन खुद का खुद से तभी ll

सौदा रास ना आया अपनी खुदगर्जी से कभी l
बारीकें सीखी थी जिन की मर्ज़ी से ही कभी ll

बैठा हूँ उन टिमटिमाते जुगनुओं सी सर्द रातों में l
चाँद मेरा भी नज़र आयेगा कभी इस मुँडेर की दीवारों पे ll    

33 comments:

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति ,'फासला सिमटा नहीं इन हथेली लकीरों का कभी ..'

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    1. आदरणीया दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (02-07-2021) को "गठजोड़" (चर्चा अंक- 4113) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. आदरणीय मीना दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आदरणीय दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  4. वजूद मेरे किरदार का भी
    कुछ उस दर्पण जैसा
    अक्स निहार छोड़ गए
    जिसे हर कोई अकेला
    बेहतरीन..
    सादर..

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  5. बहुत ख़ूब … परिंदों का ये हश्र इंसान करता है …
    विनाश का प्रमुख कारण इंसान ही है …

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    1. आदरणीय दिगम्बर जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  6. फिसल गए वो हुनर ना आया मुट्ठी को इस पल में। हमारा हाल भी कुछ ऐसा ही रहा है मनोज जी। आप जो कहते हैं, दिल से कहते हैं। और यही होना चाहिए।

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    1. आदरणीय जितेन्द्र जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  7. बैठा हूँ उन टिमटिमाते जुगनुओं सी सर्द रातों में l
    चाँद मेरा भी नज़र आयेगा कभी इस मुँडेर की दीवारों पे ll

    उम्मीद पर दुनिया कायम ।
    बेहतरीन ग़ज़ल ।

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    1. आदरणीया संगीता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  8. फासला सिमटा नहीं इन हथेली लकीरों का कभी l
    अजनबी बन गया दामन खुद का खुद से तभी..
    .बहुत ही सुंदर सराहनीय।
    सादर

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    1. आदरणीया अनिता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  9. सोचा लम्हा एक चुरा लूँ उन हसीन खाब्बों के पल से l
    फिसल गए वो हुनर ना आया मुट्ठी को इस पल में ll

    वजूद मेरे किरदार का भी कुछ उस दर्पण जैसा l
    अक्स निहार छोड़ गए जिसे हर कोई अकेला ll

    बहुत खूब !!एक-एक शेर लाजबाब...सादर

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    1. आदरणीया कामिनी दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  10. बैठा हूँ उन टिमटिमाते जुगनुओं सी सर्द रातों में l
    चाँद मेरा भी नज़र आयेगा कभी इस मुँडेर की दीवारों पे ll...बहुत सुंदर शेर,नायाब रचना।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  11. पिंजरे बंद परिंदा हूँ उन सुनहरे अरमानों का l
    पंख मिले नहीं जिसे कभी उन आसमानों का ll
    बहुत शानदार/उम्दा सृजन।
    हर शेर लाजवाब।

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  12. बहुत ही सुंदर

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    1. आदरणीय ओंकार भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  13. बैठा हूँ उन टिमटिमाते जुगनुओं सी सर्द रातों में l
    चाँद मेरा भी नज़र आयेगा कभी इस मुँडेर की दीवारों पे
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर.. लाजवाब।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  14. Replies
    1. आदरणीय सुशील भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  15. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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    1. आदरणीय आलोक भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  16. Replies
    1. आदरणीय शांतनु जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  17. उम्दा नज़्म ।

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    1. आदरणीया अमृता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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