बारिश की उन बूँदों की भी अपनी कुछ ख्वाइशें थी l
ओस बूँदों सी स्पर्श करुँ उसके गालोँ के तिल पास से ll
मचली थी घटायें भी एक रोज मदहोशी शराब सी l
छू जाऊ बरस संगेमरमर की उस हसीन क़ायनात को ll
पर चुपके से दबे पावँ बयार एक दौड़ी चली आयी l
संग अपने उड़ा बादलों को आसमाँ शून्य कर आयी ll
आवारा हो गयी हसरतें बारिश आते आते इस मोड़ पर l
बिखरा रंग गयी आसमां काले काले काजल की कोण से ll
धुन लगी थी बूँदों को भी इसी उम्र बरस जाने की l
भींगी भींगी रातों में बाँहों के तन से लिपट जाने की ll
आतुर थे छिछोरे बादल भीगने उस बरसात में l
घुँघरू बन सज जाने उन सुने सुने पावँ में ll