तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll
डोरे डाल रहे कजरे सँवरे सँवरे गगन आकाश l
तन लिपट रही शबनमी बूँदे बरस बरस आज ll
खुली खुली लटों के उड़ते जुल्फें दामन आकार l
बादल उतर रहे रह रह आगोश में आकर आज ll
मृदुल तरंग लिख रही नयी बारिश शीतल लहर l
विभोर हो नाच रहे नयन मयूर तरुवर सी नज़र ll
चेतन सचेत बदरी हो रही फुहारों की होली आय l
डूब उतर रहा तन मन बारिशों की हमजोली साथ ll
बहक गए मेघों के घुँघुरों के सारे सुर और ताल l
लगी समेटने अंजलि बूँदों के अक्स और ताल ll
तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll
बेहतरीन सृजन ❤️🌻
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् भाई जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
सादर
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
आदरणीय सुशील भाई जी
ReplyDeleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीया सरिता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
ReplyDeleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर