Saturday, June 5, 2021

तरुवर

तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll  

डोरे डाल रहे कजरे सँवरे सँवरे गगन आकाश l 
तन लिपट रही शबनमी बूँदे बरस बरस आज ll

खुली खुली लटों के उड़ते जुल्फें दामन आकार l
बादल उतर रहे रह रह आगोश में आकर आज ll

मृदुल तरंग लिख रही नयी बारिश शीतल लहर l
विभोर हो नाच रहे नयन मयूर तरुवर सी नज़र ll

चेतन सचेत बदरी हो रही फुहारों की होली आय l
डूब उतर रहा तन मन बारिशों की हमजोली साथ ll 

बहक गए मेघों के घुँघुरों के सारे सुर और ताल l
लगी समेटने अंजलि बूँदों के अक्स और ताल ll

तरुवर सा तरुण यह पागल सा मन आज l
टटोल रहा बारिश में खोये हुए पल आभास ll    

12 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय शिवम् भाई जी
      मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. आदरणीया कामिनी दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
      सादर

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  3. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ।

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    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  4. आदरणीय सुशील भाई जी
    मेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
    सादर

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  5. बढ़िया प्रस्तुति

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    1. आदरणीया सरिता दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  6. बेहतरीन प्रस्तुति।

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    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

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  7. आदरणीया अनीता दीदी जी
    हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
    सादर

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