Friday, June 25, 2021

कारीगरी

बड़े ही हुनरमंद थे उनकी कारीगरी के हाथ 
तराशते रहे काँच का दिल पथरों के साथ 

रंज ना हुआ उन हाथोँ को एक पल को भी 
नश्तर सी चुभती रही टूटे शीशे की धार 

दरिया रिस्ते लहू का था बड़ा ही बदनाम 
धड़कनों पे था मौन रहने का इल्जाम

लकीरें हथेलियाँ उकेरी नहीं उन खाब्बों ने 
साँसों का सौदा था जिस अज़नबी खाब्बों से 

थी वो एक बहती मझधार पहेली सी 
कश्ती बहा ले गयी वो दिले नादान की 

रास ना आयी उसे वफायें यार की 
दिल दगा दे गयी उस मेहताब की 

अस्तित्व बिख़र गया टूट काँच के आफ़ताब की 
वो तराशती रही पथरों से दिल चटक धार सी  

12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया दीदी जी
      मेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
      सादर

      Delete
  2. अच्छे हैं शेर ... इन्हें कोशिश कर के मात्राओं में लिखेंगे तो और भी अच्छे लगेंगे ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय दिगंबर भाई साब

      हौशला अफ़ज़ाई और सुन्दर सुझाव के लिए तहे दिल से शुक्रिया , आगे से पूरी कोशिश करूँगा , आपके सुझाव पर खरा उतरु .

      सादर

      Delete
  3. उम्दा शेरों का सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

      Delete
  4. सुंदर सृजन आदरणीय ।
    आ0 दिगम्बर जी बातों पर गौर ज़रूर कीजियेगा ।

    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय हष॔ जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

      Delete
  5. बहुत ख्‍ाूब मनोज जी,---तराशते रहे काँच का दिल पथरों के साथ " क्‍या खूब कहा--वाह

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया अलकनंदा दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

      Delete
  6. बड़े ही हुनरमंद थे उनकी कारीगरी के हाथ
    तराशते रहे काँच का दिल पथरों के साथ
    वाह!!
    बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

      Delete