सुनके उनकी मीठी मीठी बातों को l
बैठ गया पिरोनें रिश्ते धागों को ll
कशीदें अदाकारी हुनर साजों से l
छुपा लूँ पैबंद उलझे धागों से ll
रफ़ू कर फ़िर सी लूँ उन रिश्तों को l
तार तार कर गयी वो जिन रिश्तों को ll
चुभ रही एक कसक ज़िस्म कोने में l
छलनी हो रही अंगुलियाँ इन्हें सिने में ll
सिते सिते पैबंद भूल गया पिरोने धागों से l
रिश्तों के धागे सुई की उस महीन कमान में ll
रिहाई ना थी टूटी रिश्तों जंजीरों बाँध से l
जकड़ रखी थी कुछ बंदिशों ने मनोभाव से ll
रफ़ू हो हो वो बिखर गए पैबंद टाट में l
दुरस्त कर ना पाया इन्हें उलझे तार से ll
रफ़ू कर फ़िर सी लूँ उन रिश्तों को l
ReplyDeleteतार तार कर गयी वो जिन रिश्तों को ll
एक से सिलने से कितने जुड़ पायेंगे ये रिश्ते
बहुत ही सुन्दर...हृदयस्पर्शी सृजन।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
आदरणीय दिलबागसिंह जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
सादर
रफ़ू हो हो वो बिखर गए पैबंद टाट में ,
ReplyDeleteदुरस्त कर ना पाया इन्हें उलझे तार से ।
बहुत मर्मस्पर्शी सृजन ।
आदरणीया मीना दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
ReplyDeleteरिहाई ना थी टूटी रिश्तों जंजीरों बाँध से l
जकड़ रखी थी कुछ बंदिशों ने मनोभाव से ll
रफ़ू हो हो वो बिखर गए पैबंद टाट में l
दुरस्त कर ना पाया इन्हें उलझे तार से ll
वाह !! बहुत खूब...लाजबाब...एक बार जो टूटे रिश्ते कहाँ जुड़ पाते है रफू करने पर भी निशान छोड़ जाते हैं...सादर नमन आपको
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आदरणीया दीदी जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
सादर
वाह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteगहन भाव लिए मर्मस्पर्शी सृजन।
आदरणीया कुसुम दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
वाह! बहुत सुंदर!!!
ReplyDeleteआदरणीय विश्वमोहन जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
रिश्तों की रफुगिरी एकतरफा होनी मुश्किल होती है ।
ReplyDeleteभावप्रवण रचना ।
आदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
"चुभ रही एक कसक ज़िस्म कोने में l
ReplyDeleteछलनी हो रही अंगुलियाँ इन्हें सिने में ll" -
हर पंक्तियाँ चुभती-सी लगे है पढ़ने में ...:)
आदरणीय सुबोध जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
वाह बहुत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीय हष॔ जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
रफ़ू कर फ़िर सी लूँ उन रिश्तों को l
ReplyDeleteतार तार कर गयी वो जिन रिश्तों को ll
चुभ रही एक कसक ज़िस्म कोने में l
छलनी हो रही अंगुलियाँ इन्हें सिने में ll
बहुत सुन्दर.. रिश्ता दो लोगों के प्रयास से ही जिंदा रहता है.. वरना उंगलियाँ छलनी हो ही जाती हैं...
आदरणीय विकास जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर