महफ़ूज थी कुछ यादें वक़्त के उस क़िरदार में l
गुजर गयी बिन बरसे ही आवारा बादल साथ में ll
सफ़र इतना ही था मेरा फ़िज़ाओं के गुलज़ार में l
पतझड़ का मौसम सजा था बहारों के बाग़ में ll
पर कतरे परिंदों सा बंद था ख्यालों के पिंजार में l
चहकी जिसकी बोलियाँ कभी बरगद की शाख में ll
निर्जन सी सपनों की कुटियाँ इस निर्धन के पास में l
अश्रुओं का मंजर बहा ले गयी यह गुलिश्तां साथ में ll
खाली खाली नींदें सिर्फ़ खाली खाली सौदे पास में l
एकाकी के इस पल में यादें भी नहीं रही साथ में ll
मशरूफ थी जो शोखियाँ कभी गुलमोहर साथ में l
इस अंजुमन खल रही उनकी ही खलिस पास में ll
फरियाद थी महकती रहे यादों की हिना साथ में l
गुज़ारिश रास ना आयी उस काफ़िर को ख्यालात में ll
फ़लसफ़ा मजमून इतना सा ही था मेरे पास में l
यादें सदा हमसफ़र बनी रहे मेरे हर किरदार में ll