Saturday, May 15, 2021

अंकुरन

बिन दर्द जीवन का क्या मोल l
गुलाब भी खिलता काँटों के छोर ll

पीड़ ना पहचानी जिस रूह ने l
कुदरत ने रची नहीं ऐसी कपोल ll
 
कुछ और नहीं कवायद यह धड़कनो की l
फासला ना हो साँसों और रूह के करीब ll

मुनासिब हैं आहट कदमों की बनी रहे l
सामंजस्य बना रहे उम्र और तन के बीच ll

बँधी रहे साँसों से साँसों की डोर l
कमज़ोर ना हो आस की डोर ll

टूट गए जो डाली से तो क्यों रोय l
सजा दो गुलदस्ते में नए जीवन की भोर ll

बगियाँ के गुलसिताँ सजी महकती रहे l
अंकुरित कुदरत के प्राणों के बीज़ ll   

11 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय शिवम् जी
      बहुत बहुत शुक्रिया
      सादर

      Delete
    2. मुनासिब हैं आहट कदमों की बनी रहे l
      सामंजस्य बना रहे उम्र और तन के बीच ll बहुत खूब

      Delete
    3. आदरणीय संदीप जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
      सादर

      Delete
  2. बँधी रहे साँसों से साँसों की डोर l
    कमज़ोर ना हो आस की डोर ll
    अति सुन्दर सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के तहे दिल से शुक्रिया
      सादर

      Delete
  3. बहुत सुन्दर भाव, बधाई.

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय डॉ शबनम दीदी जी
      हौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
      सादर

      Delete
  4. सत्य कथन-बिना दर्द जीवन का मोल पता नहीं चलता। बहुत सुंदर...

    ReplyDelete
  5. दर्द बिना जीवन का मोल समझना मुश्किल है। जिंदगी की सच्चाई को बया करती आपकी सुंदर रचना।

    ReplyDelete