धरोहर जो मिली विरासत में l
मेरुदंड सँवार लूँ संस्कारों में ll
गुंजयमान रहे पल प्रतिपल l
प्रतिध्वनि चेतना संस्कारों की ll
ज़िक्र चलता रहे सदियों तलक l
संस्कृति उद्धभव से उथानों की ll
परिधि कोई इसे बाँध ना पाए l
प्रतिलिपि इसके पायदानों की ll
सहेजू दास्तानें उस सुन्दर लेखनी की l
टूट गयी ज़ंजीरें ग़ुलामी अविव्यक्ति की ll
विद्धेष अग्नि ज्वाला आतुर हो ना कभी l
विपरीत दिशा बहे प्रतिशोध कामना इसकी ll
लौ मशाल तमस चीरती रहे अज्ञानी की l
उम्मीद सृष्टि बँधी रहे अनुकूल किरणों की ll
परिवेश सुगम सरल हो प्रावधानों की l
बहती रहे गंगा सुन्दर संस्कारों की ll
सुंदर संदेशपूर्ण भावों भरी रचना..
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
सुन्दर नज्म।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री सर
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
आभार
बहुत सुन्दर लेखन सर
ReplyDeleteआदरणीया प्रीति दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
सादर
आदरणीय सुशील भाई साब
ReplyDeleteदिल सै शुक्रिया
आभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय रविंद्र जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए शुक्रिया
आभार
बेहतरीन रचना, बहुत बहुत बधाई हो आपको, महिला दिवस की बधाई हो
ReplyDeleteआदरणीया ज्योति दीदी जी
Deleteआपको भी महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें , मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी
Deleteआपका तहे दिल से शुक्रिया
आभार
लौ मशाल तमस चीरती रहे अज्ञानी की l
ReplyDeleteउम्मीद सृष्टि बँधी रहे अनुकूल किरणों की ll
परिवेश सुगम सरल हो प्रावधानों की l
बहती रहे गंगा सुन्दर संस्कारों की ll
बहुत खूब,लुप्त हो रही संस्कारों की लौ को फिर से जलाना जरुरी है।
बेहतरीन सृजन
आदरणीया कामिनी दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया
सादर
बहुत खूबसूरत रचना... मनोज जी ,
ReplyDeleteपरिधि कोई इसे बाँध ना पाए
प्रतिलिपि इसके पायदानों की
सहेजू दास्तानें उस सुन्दर लेखनी की
टूट गयी ज़ंजीरें ग़ुलामी अविव्यक्ति की ...वाह
आदरणीया अलकनन्दा दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
सादर
बहुत सुंदर रचना लिखी आपने ने। बधाई आपको।
ReplyDeleteआदरणीय वीरेन्द्र भाई साब
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
आभार
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
सादर
आदरणीय ज्योति भाई साब
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
आभार
.....परिधि कोई इसे बाँध ना पाए..
ReplyDeleteसच में संस्कारों की कोई परिधि नहीं
बहुत खूबसूरत
आदरणीय अमित भाई साब
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
आभार
संस्कारों की सुंदर कामना
ReplyDeleteआदरणीय कुमार जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
आभार
परिवेश सुगम सरल हो प्रावधानों की l
ReplyDeleteबहती रहे गंगा सुन्दर संस्कारों की ll
वाह!!!
सुन्दर कामना के साथ लाजवाब सृजन।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
बेहद खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteआपका दिल से शुक्रिया
आभार