ज़ख्मों के पैबंद सिलने भटकता रहा मैं l
अश्कों की कभी इस गली कभी उस गली ll
डोर वो तलाशता रहा ढक दे जो पैबंद की रूही l
दिखे ना दिल के जख़्म छुपी रहे सिलन की डोरी ll
ख़ामोशी लिए लहू रिस रहा तन के अंदर ही अंदर l
बुझा दे प्यास पानी इतना ना था समंदर के अंदर ll
मरुधर तपिश सी जल रही तन की काया l
बरगद से भी कोशों दूर थी चिलमन की माया ll
दृष्टिहीन बन गूँथ रहा ख्यालों की माला l
मर्ज़ निज़ात मिले भटकते रूह को साया ll
टूट गया तिल्सिम ताबीज़ के उस नूर का भी l
बिन आँसू रो उठी पलकों पे जब तांडव छाया ll
लुप्त था धैर्य विश्वास ना था अब गतिमान l
डूब गया प्रहर डस गया इसको तम का आधार ll
सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार l
छोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम ll
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 14 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीय दिग्विजय जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteआदरणीया जेन्नी दीदी जी
Deleteरचना पसंद करने के लिए आपका शुक्रिया
सादर
वाह , बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
आभार
वाह वाह
ReplyDeleteआदरणीय विमल भाई साब
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
वाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
सुंदर भावों का अनूठा सृजन..
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
आदरणीय सुशील भाई साब
ReplyDeleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
वाह, सुन्दर सृजन, सुन्दर भाव
ReplyDeleteआदरणीया सुरेंद्र जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
बेहतरीन रचना, खूबसूरत भाव, बहुत बहुत बधाई हो, हार्दिक आभार,ब्लॉग पर आने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
ReplyDeleteआदरणीया ज्योति दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
सादर
ओह , अश्कों और ज़ख्मों से लबरेज़ रचना ।
ReplyDeleteमार्मिक भाव ।
आदरणीया संगीता दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
सादर
सुन्दर भाव प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीया जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
सादर
सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार
Deleteछोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम।
भावों की प्रस्तुति अच्छी है।
आदरणीया मीना दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
सादर
सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार l
ReplyDeleteछोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम ll ।बहुत सुंदर दिल को छू लेने वाली लाईने आप की लेखनी को नमन ।
आदरणीया मघुलिका दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए हृदयतल से शुक्रिया
सादर
बहुत बढ़िया लिखे हो मनोज जी।
ReplyDeleteआदरणीय विरेन्द्र जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
वाह ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीया उर्मिला दीदी जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय ।
ReplyDeleteआदरणीय आलोक जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
वाह मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteआदरणीया सरिता दीदी जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
उम्दा अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteआपका दिल से शुक्रिया
आभार
सी लूँ पैबंद किसी तरह दिल के बस एक बार
ReplyDeleteछोड़ जाऊ तन का साया इसका फिर क्या काम।
बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन।
बहुत भावपूर्ण ... खूबसूरत शेर हैं सभी ...
ReplyDeleteआदरणीय दिगम्बर जी
Deleteहृदयतल से शुक्रिया
सादर
आपकी इस कविता का पहला छंद ही उस दर्द को बयां कर देता है मनोज जी जो इसके हर लफ़्ज़ में भरा है : ज़ख्मों के पैबंद सिलने भटकता रहा मैं, अश्कों की कभी इस गली कभी उस गली । मैं उन जज़्बात को महसूस कर सकता हूँ जिनसे ये अशआर वाबस्ता हैं ।
ReplyDeleteआदरणीय जीतेन्द्र भाई साब
Deleteशब्द कम है आपका शुक्रिया कहने को, दिल से आभार
बेहतरीन लेखन..
ReplyDeleteसादर प्रणाम..
आदरणीया दीदी जी
Deleteआपका दिल से शुक्रिया
आभार