गुज़ारिश की मौशकी के उस अर्ध चाँद से हमनें l
शरीक हो हमारी महफ़िल में पूरे शब्बाब में अपने ll
मुल्तवी करवादी सुरमई आँखों ने हया ऐसे l
सुरमा बह बिखर गया हर और गालों पे जैसे ll
सिफ़ारिश मुनासिब थी उनके क़ुरबत आने की l
फ़रियाद बरसों पुरानी थी पहलू उनके आने की ll
धरोहर थे कशिश के रंग बिरंगे सुनहरे पल l
अतीत के इत्र में महक रहा खोया हुआ मन ll
चट्टानों पर उकेरा सुन्दर आरज़ू आलेख कोई l
ओस की शबनमी बूँदों से बहता आवेग कोई ll
दीवानगी का आलम ना थी सरहदों की सर जमीं l
ख़ामोशी में सिमटी रातें ठहरा हुआ महताब वहीं ll
दस्तूर दिलों की इन रिवायतों का पास यही l
कसक जवां होती हैं हर आरज़ू साज में नयी ll