Thursday, December 17, 2020
साथ
Monday, December 7, 2020
तज़ुर्बा
Saturday, December 5, 2020
फ़िदा
खैरियत
अहसास बस खाली खाली हैं I
तेरे यूँ रुसवा हो चले जाने के बाद II
सहमी सहमी सी मंज़िल हैं I
रुकी रुकी सी जिंदगानी हैं II
आँखों में कुछ नमी नमी सी हैं I
पानी कम दरिया लहू भारी हैं II
दिल रुला के गए तुम ऐसे I
अलविदा दुनिया सारी हैं II
वीरानी दहलीज बदल गयी दिलों के मौसम I
खंडहर तब्दील कर गयी यह दिल बेमौसम II
बची साँसों के पड़ाव आखरी हैं I
ख्वाईश बची हैं बस एक आखरी II
बस पूछ लेना खैरियत तुम मेरी I
गूजरों जब तुम कभी मेरी गली II
Monday, November 16, 2020
लम्हें
Thursday, November 12, 2020
रंग
Tuesday, October 13, 2020
ll जिरह ll
Thursday, October 8, 2020
नींद
Thursday, October 1, 2020
चकोरी
Wednesday, September 23, 2020
साँवला
Thursday, September 3, 2020
सौदा
Saturday, August 15, 2020
बस्ती
Friday, August 14, 2020
अजनबी महरबा
देख मुझे ऑनलाइन तुम ऑफ लाइन हो जाती हो l
डीपी बदलते ही सबसे पहले लाईक कर जाती हो ll
व्हाटस एप स्टेटस हो या फेस बुक l
कमेंट के नाम ठेंगा दिखा जाती हो ll
तुम कहती हो कोई खास रूचि नहीं l
फिर भी मेरी तस्वीरों को डाउनलोड करती जाती हो ll
भूल गयी तुम टेक्नोलॉजी ने युग बदल डाली हैं l
प्रोफाइल विजिट की ईमेल तुरंत मुझको पंहुचा जाती हैं ll
कैसे निहारु तुझे ऐ अजनबी महरबा l
तूने अपनी डीपी में भी तस्वीर मेरी जो लगा डाली हैं ll
Wednesday, August 12, 2020
कहानी
कहानी अपनी कुछ कुछ मिलती जुलती सी है l
इश्तिहारों से सजी जैसे कोई जुगलबंदी सी हैं ll
पर एकबारगी गिरवी क्या रख दिये l
डैने जैसे फड़फड़ाना ही भूल गये ll
निशान गहरे सजे थे तन गलियारों में l
निशां लम्बी थी खोये हुए मझधारों में ll
दर्पण भी पहचानना भूल गयी l
घेर लिया उत्कंठि ज्वालाओं ने ll
बेदखल हूँ क्षतिज के हर अरमानों से l
मौन स्तब्ध हूँ अपने ही साये से ll
तू भी निःशब्द जकड़ी जंजीरों में l
टिमटिमा रही हो जैसे मज़बूरी में ll
एक सहमी चीत्कार हैं अपनी बंदगानी में l
मिलती जुलती सी फ़रियाद हैं तेरी मेरी कहानी में ll
Tuesday, August 11, 2020
शुन्य
चाहा था एक रोज समेट लूँ दुनिया सारी l
चाहत अब बस हैं इतनी सी समेट लूँ अपनी साँसे सारी ll
वेदना सृजन श्राप सी लगने लगी l
कष्ट मृदु वरदान सी लगने लगी ll
अल्प हैं राह फरियाद के पड़ाव की l
संख्या तो बस हैं उम्र लिहाज की ll
हुनर कमी थी शायद परवान के कुर्बान में l
सजा मेरी थी रजा उसकी ना थी इस दरखास्त में ll
ख्वाईश बस एक ही बची हैं l
कह रहा हूँ दिलों अरमान से ll
हर बंधन से अब मुक्त हो जाऊ l
शुन्य था शुन्य में मिल जाऊ ll
छोड़ कारवाँ ध्यान मग्न काम में l
गुजर जाऊ दहलीज के इस मुकाम से ll
शुन्य था शुन्य में मिल जाऊ l
गुजर जाऊ दहलीज के इस मुकाम से ll
Friday, July 24, 2020
सकून
Sunday, July 19, 2020
सामंजस्य
तन्हा चाँद
Sunday, July 12, 2020
पल
Friday, July 10, 2020
अझबूझ
Saturday, June 27, 2020
ओस की बूँद
Saturday, June 20, 2020
निदान
Wednesday, June 17, 2020
कहानी
Saturday, June 13, 2020
दाग
महताब की अदाओँ सा रंग बदलता इसे देखा
मुनासिब होता दिलों के दरमियाँ फरमाइसे ना होती
शायद खलिस दिलों की तब और जबां होती
हौले हौले फितरत रंगों की बदल गयी
सिलसिलों ने भी गुमनामी की चादर ओढ़ ली
हमने भी फिर मोहब्बत से रंजिश कर ली
कब्र इस दिल की अपने ही हाथों खोद दी
बेफिक्री का आलम अब ऐसा छाया हैं
बिन उसके ज़िक्र कोई ना हो पाया हैं
दूर फ़िर फ़लक पर चाँद नज़र आया हैं
शायद दीदार ए यार को फिर प्यार याद आया हैं
लहू के हर कतरे कतरे से एक ही फ़रियाद आया हैं
दाग के साथ चाँद और हसीन नज़र आया हैं
Tuesday, June 9, 2020
मैं
सवाल पर वहीं आकर ठहर जाता हैं ll
कौन हूँ मैं प्रतिबिंब हूँ या कोई परछाई हूँ l
या दर्पण में नज़र आये वो सच्चाई हूँ ll
क्यों रातों को कभी जुगनू सा चमकता हूँ l
क्यों कभी अपनी चमक से डरता हूँ मैं ll
मशवरा दिया पल पल के इम्तिहानों ने l
तलाशों उतर मयकदे के द्वारों पे ll
बदल रहमत अँगार शहद से ऐसे महकेंगें l
जाम के हर सुरूर में सिर्फ मैं ही मैं छलकेंगें ll
खुदा नाचीज़ होगा ठहरा हुआ पल होगा l
हर प्यालों के घूँट में गुजरा हुआ पल होगा ll
हो फासलों से रूबरू आवेग जो चला l
खुद की पहचान में खुद से दूर हो चला ll
लूट गया इन राहों पे मैं काफ़िर बन के l
निगल गया मशवरा मुसाफ़िर बन के ll
Monday, May 25, 2020
ईद
खुदा नज़रें इनयाते कर दे थोड़ी
चाँद नज़र आ जाए मेरी भी सर जमीं
नमाज़ ईद की अदा कर दूँ उसकी सर जमीं
अज़ान बन गूँज उठे हर इबादत मेरी
निहारु जब आसमां दुआ कबूल हो मेरी
रस्म निभाऊ गले मिल उस चाँद की हथेली
दस्तूर रिवाज बन जाए हबीबी की ईदी
सजदा उस आफताब का महकता रहे
सरके जो हिजाब तो महताब निखरता रहे
बस वो छुपा चाँद जो नजर आ जाए
हर रोज़ नमाज़ अदा कर दूँ उस ईद की खुशी
Saturday, May 16, 2020
प्रेम कहानी
पतझड़
पर कटे परिंदो सा विचलित हैं तन ll
स्याह अंधेरों में गुम हो गया वक़्त l
चिनारों के दरख़्तों पर अब नहीं कोई सहर ll
बंजारा हो फिर रहा हूँ दर बदर l
कैसे पिघले पत्थर रहा ना कोई हमसफ़र ll
कड़वाहट घुली मौसम मिजाज ऐसी l
दूरियाँ थाम ली रिश्तों मिजाज वैसी ll
महज इतेफाक कहूँ या आत्म संजोग l
अपरिचित से लगने लगे हैं खुद के नयन ll
बदल गए हैं अब सपनों के भी पल l
टूट गए साहिल ढह गए रेतों के महल ll
नवयौवन नवरंग फूलों खिला नहीं l
बदरा इस सावन खिलखिला हँसा नहीं ll
बदल गयी तस्वीर चिनारों की पुरानी l
वसंत दरख्तों पर फिर कभी लौटा नहीं ll
सुहानी शामें ठंडी आहों सी सिसक गयी l
कारवाँ पतझड़ का अब तलक गुजरा नहीं ll
Sunday, May 10, 2020
दर्द
अश्कों का दरिया बन छलकता हैं
दर्द से ही धड़कनों की पहचान हैं
वर्ना तो जिंदगी पूरी गुमनाम हैं
उखड़ती साँसे क्यों इतनी बईमान हैं
दर्द की गहराई में छुपा कोई राज हैं
दर्द दिलरुबा आँखों की
पल प्रतिपल भाव बदलती हैं
गुस्ताखियाँ दर्द की कैद आँखों के अंदर
थामे हुए एक गहरा समंदर दिल के भीतर
रूह का कितना हसीं धोखा हैं
दर्द आँखों में चेहरे पे गुलसिताँ हैं
इस गफलत में जी रहा ज़माना हैं
फिसल गया दर्द मिला जब कोई बेदर्द फ़साना हैं
बिन दर्द के अब चैन नहीं
दर्द नहीं तो यह जीना भी बेस्वादा हैं
दर्द का अब दर्द रहा नहीं
डर नहीं यह जख्म कोई पुराना हैं
नयना
सपनों में तुम जब आना बंद रखना अपने नयना ll
मिले जो नयन तो छलक पड़ेगें रैना l
पहेली बन फलक पर छाये रहे नयना ll
झुके पलकें जब तेरी शरमा जाए नयना l
सुरमई आँखों में आबाद रहे यह सुन्दर दुनिया ll
उठे तो उठे नजरें तेरे ही नयनों के जाम से l
बस नशा इन नयनों का बेपर्दा होने ना पाय ll
मैं पीता रहूँ तेरे नयनों के ख्यालातों से l
प्यास इन शुष्क लबों की बूझने कभी ना पाय ll
फरियाद करे रहे रोग लगे यह नयना l
मियाद खत्म होने ना पाए लुका छिपी मुलाकातों की ll
मौहलत थोड़ी और दे दे ए नयना l
ताउम्र ताबीर करूँगा उसके सुन्दर नयना की ll
बन गए गुलाम मेरे खोये खोये नयना l
नज़र मिलायी तुमने और बदनाम हो गए मेरे नयना ll
आँख मिचौली खेल रहे तेरे मेरे नयना l
आँख मिचौली खेल रहे तेरे मेरे नयना ll
Thursday, May 7, 2020
मधुशाला बदनाम
एक बस मधुशाला ही सच्ची सच्ची सी ll
फेहरिस्त थोड़ी लम्बी इसके कद्रदानों की l
खुदा भी झुक गया देख रौनक मधुशाला की ll
क्या पंडित क्या मुल्ला क्या पादरी l
चौखट सभी इसकी चूमे बन इसके जायरीन ll
मधुशाला यारी महफ़िल कुँवारी ll
झूम रहे सभी एक रंग रंगे भूल मजहब तास्कीन ll
मशहूर काफिले मधुशाला नाम के l
नित सजा रहे कारवाँ नए मधुशाला जाम के ll
बह रही उलटी गंगा मधुशाला प्याले अंदर l
इबादत नयी लिख रही प्रेरणा मधुशाला समंदर ll
हर घूँट कह रहा अनसुना सा इतिहास l
बिन मधुशाल शतरंज की भी ना कोई बिसात ll
अमृत से बढ़कर इसका लग रहा अवदान l
मशहूर तभी जग में मधुशाल के कद्रदान ll
यहीं नाजनीन यहीं स्वर्ग का आभास l
तर दे रस फिर भी मधुशाला ही बदनाम ll
Wednesday, May 6, 2020
रिश्तों की चाबी
चाबी रिश्तों की अलग हो गयी गुच्छे की पहरेदारी पर ll
बड़ी सिद्धत से सँवारा सहेजा जिस रिश्ते को l
हिफाज़त ही गुनाह बन गयी उसकी नजाकत को ll
सहज बेबाक पतंगों से उड़ते रहते थे जो रिश्ते l
डोर उसकी ही उलझ कट गयी अपने ही माँझे से ll
लाख जतन की मिट्टी महकती रहे इसकी की कोमल राहों की l
फूलों से सजी रहे पगडण्डी इसकी राहोँ की ll
खुदा भी ख़ौफ़ज़दा हो गया इसके चिंतन क्रोध के आगे l
तल्खी में चादर नकाब की बैरी बन जब इसने ओढ़ ली ll
गुरुर था जिस रिश्ते को नफ़ासत अंदाज़ से जीने का l
मगरूर बन बिफर गया आसमां उसके कोने कोने का ll
हिसाब अधूरा रह गया कुछ खोने और पाने का l
सवाल अटक गया बेहिसाब जज्बातों का ll
प्रायश्चित करूँ कैसे अनवरत बह रहे अश्कों का l
निरुत्तर वो मौन है सजदा रिश्तों के रखवालों का ll
प्रायश्चित करूँ कैसे अनवरत बह रहे अश्कों का l
निरुत्तर वो मौन है सजदा रिश्तों के रखवालों का ll
Sunday, May 3, 2020
आवाज़
खरीद सके जो इस तन्हा दिल के पैगाम ll
ख्वाईश हैं सौदागर मिले कोई ऐसा नायाब l
मेहताब बन निखर आये दिलों के अरमान ll
हालात ने पहरे लगाये हुए संवादों पर आय l
ताले पड़ जड़ गए जुबाँ के प्यालों पर आय ll
बिन कड़वाहट रिश्तों में दूरियाँ ऐसी बन आयी l
परछाई अपनी भी दस क़दम दूर खड़ी नज़र आयी ll
प्रतिलिपि फिर खोजी आफ़ताब के पास l
रहनुमा बन रूह उतर आये इसकी आवाज़ ll
महरूम ना हो कभी रिश्तें भी दूरियों के दरम्यां l
महफ़िल ओर मुखर आये बेक़रार धड़कनों के पास ll
ढलती साँझ नकाब के पीछे छुपी मुस्कान l
क़त्ल कर दिल का खरीद लिए सारे पैगाम ll
वो काफिर था या रहगुजर बेचैन थे नयनों के तार l
जल गयी चिंगारी बुझ गए जुल्मों सितम के तार ll
आँधियों के मेले में साये को मिल गया आकार l
हमसफ़र बन मिल गया दिल को जैसे कोई परवरदिगार ll
Tuesday, April 21, 2020
अजनबी जिंदगी
अब तो बस यह किस्तों में सिमट रह गयी ll
ताबीज़ को मानो खुद की नज़र लग गयी l
जैसे धुप खुद अपनी तपिश से जल गयीll
साँझ की कवायदें भी अब बिन सुरूर ही ll
बंद मयखानों की ज़ीनों पे ही ढल गयी ll
मौशकी थी जिसकी तारुफ़ से l
चाँद बन वो भी बादलों में छुप गयी ll
अब क्या नींद क्या नींदों के पैगाम l
बिन पलक झपके ही रात ढल गयी ll
सफ़र अब यह अजनबी सा बन गया l
हमसफ़र साँसों का साथ दूर छूट गया ll
कल तलक जो एहतेराम हबीबी था l
आज संगदिल बेरूह जिस्म बन गया ll
मज़लिस सजी रहती जिसकी धुनों पे l
धुंध पड़ गयी मय्यत की उसके सीने पे ll
करवटें बदल राहें बदल साजिशें ऐसी रची काफ़िर ने l
हाथ छुड़ा जिंदगी दूर हो गयी जिंदगानी से ll
मायूसी का आलम ओढ़ रुखसत हो गयी रूह l
रोती बिलखती रह गयी धड़कनों की रूह ll
किस्तों में बंट गयी जिंदगानी की रूह l
किस्तों में बंट गयी जिंदगानी की रूह ll
Wednesday, April 15, 2020
क्षितिज
हिल रहा हिमालय का तेज़
अँगार बन बरस रहा
जल प्रपात कोहराम का सेज़
भष्मीभूत हो भभक रहे
अरण्य नगर और खेत
भीभिषका लाली दानव रूप धरे
तटस्थ खड़ा ज्वालामुखी यमदूत बने
पसरा मातम कायनात रौद्र रूप धरे
अग्रसर सृष्टि इंतकाल मुख खड़े
पटाक्षेप तांडव लहरें
कर अस्त भाग्य कर्म
मरणासन्न शैया क्षितिज ओर चले
क्षितिज ओर चले
Monday, April 13, 2020
बेईमान यादेँ
कभी नींदें चुरा ले जाती हैं
यादेँ तेरी बड़ी बेईमान हैं
खुली आँखों में सपनें संजो जाती हैं
कभी झपकी कभी थपकी
खट्टी मीठी यादों के ऐसे पल बुन जाती हैं
कभी नींदों में मुस्कराता हूँ
कभी करवटों में तकिये से लिपट जाता हूँ
घरौंदे यादों के ऐसे मचल जाते हैं
मैं फिर से बचपन में लौट आता हूँ
कुछ अध लिखे खतों की सोफ़ियाँ
कुछ बिछड़े जमाने की दूरियाँ
चाँद में आज भी तेरा ही अक्स बना
यादों की लोरियाँ गुनगुना जाती हैं
इसी बहाने नींदों में ही सही
मुलाक़ात अपनी मुकम्मल करा जाती हैं
भुला दस्तूर अध खुली पलकों का
यादें तेरी रात महका जाती हैं
छलकती पलकें आज भी तस्वीर
तेरी यादों की ही बुनती जाती हैं
तेरी यादों की ही बुनती जाती हैं
Wednesday, April 8, 2020
ठहराव
रस्मों रिवाज़ की तिलांजलि दे आया
बन अपनी नज़रों में अपराधी
आवाज़ में ठहराव को हवा दे आया
ठहराव हैं आत्मसात का
घुटनों पे रेंगती सच्चाई का
खोये आत्मसन्मान की अश्रु धारा का
बदल गया प्रहर का रूप
टूट बिखर गए माला के फूल
अँधियारा बदनसीबी का
बुझा गया प्रकाश पुंज
गुमनाम हो गयी नियति
बदल गए जीवन बोल
ढह गयी मिट्टी कुनबे की
लुप्त हो गए लकीरों के छोर
जकड़ गयी जंजीर अहसानों की
गुलाम हो गए हस्त रेखाओं के मोल
ठहरने लगी दिल की आवाज़
ना कटने वाली बैचैन उम्र दराज़ों के ठोर
बैचैन उम्र दराज़ों के ठोर
Friday, April 3, 2020
दुल्हन
मधुर मिलन की आस
खनकती चूड़ियों के बोल झाँझर की तान
घोल रही मधुमास में मिश्री की मिठास
बिंदिया लिख रही ग़ज़ल नयन छेड़ रहे साज
प्रियतम के आने की सजनी जोह रही बाट
क्यों देर हो रही प्रियतम को आज
ना कोई संदेश ना कोई पैगाम
क्या पिया छोड़ चले गए लिख अधूरी मनुहार
बढ़ रहा धड़कनों का साज
निहारे कभी दर्पण कभी मेहंदी लगे हाथ
इस बीच गूँज उठी शहनाई
आ पहुँचे साजन तोरण द्वार
सज गयी डोली सजनी हुई विदा को तैयार
भुला दुःस्वप्न विचार
बन दुल्हन चल दी प्रियतम के द्वार
माने
पहरे लगा गए तम के अँधियारे
सिफारिश करूँ अब आफताब से कैसे
छिप गए तारे सारे अमावस के घोरे
जज्बात कैद हो रह गए सीने मेरे
जाहिर करूँ अब कैसे अरमानों के पहरे
पर कट गए परिंदों के जैसे
हालात हो गए मुजरिम जैसे
कैद हो गए साँझ सबेरे
पाबंदी लग गयी पलकों के आगे
बदल गए जिंदगी के माने
बदल गए जिंदगी के माने
Thursday, April 2, 2020
विचलित पलकें
नींद भी खो गयी पलकों के साथ
बेचैन हो रही नज़रें
ढूँढने सपनों में अपना किरदार
अर्ध निशा तलक करवटों ने भी छोड़ दिया साथ
सोचा गुजार लूँ कुछ पल चाँद के साथ
निहारा झरोखें से
पाया नदारद हैं चाँद भी सितारों के साथ
रात प्रहर लंबी हो गयी
एकांत सिधारे नींदों के पैगाम
हर घड़ी टटोल रही आँखे
विचलित पलकें नींदों के नाम
विचलित पलकें नींदों के नाम
Wednesday, April 1, 2020
अहंकार
कायनात भी स्वतः आ पहुँची नष्ट होने के कगार
बिन चले एक भी तोप , गोली और तलवार
हर ओर लग गये पर्वतों से ऊपर लाशों के अम्बार
रास ना आया प्रकृति को अहंकारी मानव का
चेतना शून्य वर्चस्व का यह अंदाज़
मूक दर्शक बन रह गया बस ख़लीफ़ा
नेस्तनाबूद हो रही सम्पूर्ण सृष्टि आज
सन्नाटा मरघट का ऐसा पसरा चहुँ ओर
जल रही चिताओं की होली बुझा गयी जीवन लौ
शिथिल पड़ गयी मानवता विनाश लीला वेग को
रो उठी कुदरत देख अपनी ही रचना तांडव आकार
प्रतिघात कर प्रहार कर सभ्यता के सीने को
अपने स्वार्थ को कलंकित दृष्टि विहीन मानव ने
जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को
जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को
Thursday, March 26, 2020
पूर्णविराम
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय
अपने अभिमान गुरुर में भूल मर्यादा रेखा को
लहूलुहान छलनी कर सीना सृजन दाता को
लिख दिया मानव कुंठा ने नया विपत्ति अध्याय
रूठ गयी कुदरत अपनी ही बेमिशाल रचना के
बिगड़ते बिखरते अजब गजब पैमानों से आज
नाग बन डस गये मानव को
उसके ही विनाशकारी हथियार आय
लग गया ग्रहण सम्पूर्ण सृष्टि पर
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
Friday, March 20, 2020
बेबस नारी
नुमाईस लगा रखी हैं अंधकार ने इतनी
शुष्क लबों को डरा रही
आहट पद्चापों की अपनी
कितनी व्यतिथ यह जिंदगानी हैं
हर गली चौराहों नुक्कड़ पे
शाम ढले यही कहानी हैं
वहशी दरिंदों की नजरों ने पहनी
हैवानियत हवस की लाली हैं
चीरती कोई चीख वीरान सन्नाटे को
हृदयगति एक पल को ठहरा जाती हैं
कितनी बेबस बना दिया कुनबे ने
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
Wednesday, February 12, 2020
तेरा शहर
उस बरगद का अफसाना आज का फ़साना सा हैं
दरमियाँ जो समेट ली थी चाहतें
वो तो बस मुलाक़ात का एक बहाना हैं
गुजरू जब कभी तेरे शहर की गलियों से
लगे आज भी चमन खिल आया
मानों पीपल की टहनियों पे
पसरी जहां मेरे शाम की इबादत हैं
तेरे साये में वहा आज भी मेरे रूह की ही हुकूमत हैं
चौखट दहलीज की कभी लाँघ ना पाया
डोली तेरी किसी और किनारे छोड़ आया
फिर भी अपने आँगन से तेरी खनख विदा ना कर पाया
ना ही तेरे वजूद को खुद से रुखसत कर पाया
और उन शबनमी यादों की मिठास में
तेरे शहर से ही रिश्ता निभाता चला आया
Friday, January 31, 2020
याददाश्त
Wednesday, January 29, 2020
शामें
आफ़ताब के सुनहरे नूर को
चाहतों का पैगाम लिखता हूँ
ख्यालों से निकल आँखों में उतर आयी
उस महजबी को सलाम लिखता हूँ
गुले गुलशन एहतराम लिखता हूँ
काफ़िले तारुफ़ के तरानों में
नजरानों की सौगात लिखता हूँ
इन बेजान धड़कनों से
उस पाक ए रूह को फ़रियाद लिखता हूँ
सारी सारी रात करवटों में
खुद से खुद बात करता हूँ
सुरमई छुईमुई उसकी पलकों में
नींदे अपनी तलाश करता हूँ
गीत ग़ज़लों मैं अपनी शामें आबाद करता हूँ
Friday, January 10, 2020
मधुमास
ढाह गयी गर्द का अंबार
सुबह की सुनहरी धूप को
ग्रहण लगा बना गयी अमावस की रात
ग़म की तन्हाई सिर्फ़ अश्रु मंजरों का साथ
ना कोई तारे ना ही सितरों का पैगाम
काफ़ूर हो गया नशा इश्क़ का
मदहोश सुरूर आया ना कोई काम
सहेली साँझ की थमा गयी हाथों में जाम
पर पैसों की खनक में खो गयी
दिलबरों के रूह के मिलन की रात
खुदगर्ज बन नीलाम होती वफ़ा चाहते
हरम की गलीयों सा विचलित कर गयी मधुमास
हरम की गलीयों सा विचलित कर गयी मधुमास