तज़ुर्बा ना पूछ ए सोखियाँ l
झुरिआ वयां रही ख्यालों की लड़ियाँ ll
बदल गयी जो रंग जुल्फ़ों के l
वो चाँदनी कम ना थी औरों से ll
लिखें हैं उन्हें खत लाखों हटेलिओं में l
मुरीद थी निगाहें जिनकी परवाज़ों में ll
सुरूर उस साकी का औरों से दूजा था l
हिना सी महकती गुलबदन का आसमां और था ll
कभी पर्दा कभी बेपर्दा अटखेलियाँ करती बेपरवाह l
जादू सा सम्मोहन वश करती उसकी नादानियाँ ll
फ़िसल गए वो वक़्त दरख़्तों की गहराई में l
खुमारी फिर भी उतर ना पायी दिल की गहराई से ll
जिन्दा वो आज भी हैं साँसों की सच्चाई में l
बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में ll
बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में l
बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में ll
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 08 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया यशोदा दीदी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
आदरणीया पम्मी जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
बहुत ही सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteसादर
आदरणीया अनीता दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
आदरणीय सुशील जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआदरणीय शांतनु जी
Deleteशुक्रिया
आभार
सुन्दर लेखन
ReplyDeleteआदरणीया विभा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
सुंदर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआदरणीया शरद दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
वाह!बहुत खूब!
ReplyDeleteआदरणीया शुभा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
जादू सा सम्मोहन.... उम्दा ।
ReplyDeleteआदरणीया अमृता दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
सुंदर मनोहारी रचना..।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
फ़िसल गए वो वक़्त दरख़्तों की गहराई में l
ReplyDeleteखुमारी फिर भी उतर ना पायी दिल की गहराई से ll
जिन्दा वो आज भी हैं साँसों की सच्चाई में l
बेताबी वही हैं धड़कनों की परछाई में ll
बहुत खूब!
आदरणीया कविता दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
सुन्दर , अति सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय आलोक जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
आभार
बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteआदरणीया सघु दीदी जी
Deleteहौशला अफ़ज़ाई के लिए दिल से शुक्रिया
आभार