आयतें बन बरस रही लबों पे तू अल्फ़ाज़ों की तरह l
मिल गयी रुमानियत काफिर को रिवायतों की तरह ll
ज़िक्र तेरा रहा हर इबादत में रूह की तरह l
गूँज रहा कलमा तेरा नूर ए अज़ान की तरह ll
रूहानियत बन बरस रही तू सपनों की ताबीर की तरह l
छू गयी दिल ए कायनात को तू खुदा की तरह ll
रंग समेटे हैं तूने लाखों इंद्रधनुष की तरह l
समेट ले मुझको भी तेरी आगोश में समंदर की तरह ll
रंज हैं उस चाँद से छिपा हैं अब तलक गैरों की तरह l
प्रतिलिपि जिसकी बसी दिल में धड़कनों की तरह ll
प्रतिबिंब छाया तेरी नाच रही बाँसुरी सरगम की तरह l
छा रही ख़ुमारी तेरे इश्क़ की पतझड़ में सावन की तरह ll
उतर आ धरा बन मरुधर मृगतृष्णा की तरह l
मिल जाऊ रच जाऊ तुझ में जीवन तरंगों की तरह ll
मिल जाऊ रच जाऊ तुझ में जीवन तरंगों की तरह l
मिल जाऊ रच जाऊ तुझ में जीवन तरंगों की तरह ll
वाह।
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् जी
Deleteशुक्रिया
आभार
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआदरणीय नितिश जी
Deleteशुक्रिया
आभार
बहुत सार्थक, उम्दा।
ReplyDeleteधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteआपको भी धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ
मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
आभार
वाह!
ReplyDeleteक्या बात
आदरणीया सधु दीदी जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआदरणीया ज्योती दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार