जिरह होती रही तेरी मेरी साँसों में l
साजिश कोई रची यादों के खुले पन्नों ने ll
बेकाबू हिचकियाँ मंजर बेपर्दा आरज़ू बबंडर l
साँसों की चिल्मन में तेरे ही रंगों का समंदर ll
काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
खट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में ll
नज़ाकत भरी रुमानियत थी इस हसीन पल में l
रंज था पास हो के भी वो पास ना थी इस पल में ll
रिहा थी ताबीर तस्वीर साजिश पदचापों की l
मेहराब थी हिचकियाँ खूबसूरत अहसासों की ll
बंदिशें थी साँसों की खुद से खुद अगर l
जुदा औरों से थी राहें अपनी ए रहगुज़र ll
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-10-2020) को "रास्ता अपना सरल कैसे करूँ" (चर्चा अंक 3854) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
वाह।🌻
ReplyDeleteआदरणीय शिवम् जी
Deleteशुक्रिया
आभार
काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
ReplyDeleteखट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में l
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर।
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
बहुत ही सुंदर ।
ReplyDeleteआदरणीया अनीता दीदी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
सुन्दर
ReplyDeleteआदरणीय सुशील जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
ReplyDeleteखट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में,,,,।।।बहुत सुंदर,,,,,,
आदरणीया मघुलिका दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
सुन्दर गजल .... बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआदरणीय सिन्हा जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
बहुत ख़ूब मनोज जी ! दिल को छू लेने वाले अशआर हैं ये ।
ReplyDeleteआदरणीय माथुर जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार