उलझी लटें बिखरे घुँघराले लंबे लंबे केश l
सुलझाती अंगुलियाँ दे रही घटाओं को संदेश ll
उमड़ घुमड़ आ मेघा प्रियतम भेष l
बदरी को तरस रही चकोरी की मुँडेर ll
निहारु जब जब दर्पण बरस उठो तब तब मेघ l
मुग्ध हो उठे जिससे चकोरी के शरबती नयन ll
उड़ा चल बहा चल आँचल संदेश वेग l
भींग रही चकोरी प्रितम विरह सेज ll
गुनगुनाती धूप मेघों का शीतल रूप l
इंद्रधनुषी किरणें बेचैन पलकों का रुख ll
घरोंदे की महक मोहल्ले की सड़क l
पुकार रही बदरा लेती जा इस मुँडेर का संदेश ll
सँवारु लटें रह रह अब ना बदलूँ करवटें सेज l
दामन आलिंगन करा दे चकोर संग ऐ मेघ ll
दामन आलिंगन करा दे चकोर संग ऐ मेघ l
दामन आलिंगन करा दे चकोर संग ऐ मेघ ll
सुंदर रचना
ReplyDeleteआदरणीय सुशील जी
Deleteसर मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
आभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 02 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीया दिव्या जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
प्रकृति और रूपसी का मनोरम अंकन । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteआदरणीया मीना दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
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ReplyDeleteबहुत बढ़िया🌻
Deleteआदरणीय शिवम् जी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय कविता दीदी
Deleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
प्रकृति का सुंदर मानवीय करण ।
ReplyDeleteसुंदर श्रृंगार सृजन।
आदरणीय
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत शुक्रिया
आभार
बहुत सुन्दर सृजन प्रकृति के मानवीयकरण पर...
ReplyDeleteवाह!!!
आदरणीया सुधा दीदी जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार