Thursday, October 1, 2020

चकोरी

उलझी लटें बिखरे घुँघराले लंबे लंबे केश l
सुलझाती अंगुलियाँ दे रही घटाओं को संदेश ll

उमड़ घुमड़ आ मेघा प्रियतम भेष l
बदरी को तरस रही चकोरी की मुँडेर ll 

निहारु जब जब दर्पण बरस उठो तब तब मेघ l
मुग्ध हो उठे जिससे चकोरी के शरबती नयन ll

उड़ा चल बहा चल आँचल संदेश वेग l
भींग रही चकोरी प्रितम विरह सेज ll

गुनगुनाती धूप मेघों का शीतल रूप l
इंद्रधनुषी किरणें बेचैन पलकों का रुख ll 

घरोंदे की महक मोहल्ले की सड़क l
पुकार रही बदरा लेती जा इस मुँडेर का संदेश ll

सँवारु लटें रह रह अब ना बदलूँ करवटें सेज l
दामन आलिंगन करा दे चकोर संग ऐ मेघ ll
 
दामन आलिंगन करा दे चकोर संग ऐ मेघ l
दामन आलिंगन करा दे चकोर संग ऐ मेघ ll     

15 comments:

  1. Replies
    1. आदरणीय सुशील जी
      सर मेरी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
      आभार

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 02 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया दिव्या जी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

      Delete
  3. प्रकृति और रूपसी का मनोरम अंकन । अति सुन्दर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया मीना दीदी जी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

      Delete
  4. Replies
    1. आदरणीय शिवम् जी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

      Delete
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय कविता दीदी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

      Delete
  6. प्रकृति का सुंदर मानवीय करण ।
    सुंदर श्रृंगार सृजन।

    ReplyDelete
  7. आदरणीय
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया
    आभार

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर सृजन प्रकृति के मानवीयकरण पर...
    वाह!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया सुधा दीदी जी
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद
      आभार

      Delete