जिरह होती रही तेरी मेरी साँसों में l
साजिश कोई रची यादों के खुले पन्नों ने ll
बेकाबू हिचकियाँ मंजर बेपर्दा आरज़ू बबंडर l
साँसों की चिल्मन में तेरे ही रंगों का समंदर ll
काँच सी नाज़ुक इन गुलिस्ताँ कड़ियों में l
खट्टी मीठी सलवटें पड़ गयी बातों ही बातों में ll
नज़ाकत भरी रुमानियत थी इस हसीन पल में l
रंज था पास हो के भी वो पास ना थी इस पल में ll
रिहा थी ताबीर तस्वीर साजिश पदचापों की l
मेहराब थी हिचकियाँ खूबसूरत अहसासों की ll
बंदिशें थी साँसों की खुद से खुद अगर l
जुदा औरों से थी राहें अपनी ए रहगुज़र ll