Thursday, September 3, 2020

सौदा

निभाने कुछ मोहब्बत की रश्में I
बेचने चला था दिल गैरों के बीच II   

मुनासिब ना था सौदा अरमानों के बीच I
मंजूर ना था रहगुजर को इससे कम का पीरII

फासला था लम्बा जख्म था गहरा I
काफिराना सा खो चला वजूद इनके बीच ll

दुःस्वप्न सा था बँटवारा दिलों की मंजिलों बीच l
नज़दीकियों की दूरिओं में विरह था सूनेपन का बीज II 

आईना भी टूट बिखर गया था मन के बीच I
अंजाम ए फेहरिस्त बदल गयी थी आधी राह बीच II

मुनादी करवा दी वफाओं ने विदाई बीच I
खरा किरदार बिक रहा गुमनामी बीच II

अंजुमन की इस गुलिस्ताँ में आ गया मरुधर तीर I
मिला ना कोई सौदागर बावरा हो गया मन अधीर II

अंजुमन की इस गुलिस्ताँ में आ गया मरुधर तीर I
मिला ना कोई सौदागर बावरा हो गया मन अधीर II

14 comments:

  1. दुःस्वप्न सा था बँटवारा दिलों की मंजिलों का I
    नज़दीकियों की दूरिओं में विरह था सूनेपन का II
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर... लाजवाब सृजन।

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    1. आदरणीया सुधा दीदी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

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    1. आदरणीय शास्त्री जी
      रचना पसंद करने की लिए दिल से शुक्रिया
      आभार

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को   "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"   (चर्चा अंक-3815)   पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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    1. आदरणीय शास्त्री जी
      मेरी रचना को अपना मंच देने के लिए शुक्रिया
      आभार
      मनोज

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  4. अच्छी कविता । हार्दिक आभार ।

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    1. आदरणीय करून जी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार
      मनोज

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    1. आदरणीय गुरू जी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार
      मनोज

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  6. नासिब ना था सौदा अरमानों के बीच I
    मंजूर ना था रहगुजर को इससे कम का पीरII,,,,,,बहुत सुंदर, ।

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  7. आदरणीया मधुलिका दीदी
    आपका बहुत बहुत शुक्रिया
    आभार

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  8. अंजुमन की इस गुलिस्ताँ में आ गया मरुधर तीर I
    मिला ना कोई सौदागर बावरा हो गया मन अधीर II
    बहुत सुंदर।

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    1. आदरणीया ज्योती दीदी
      आपका बहुत बहुत शुक्रिया
      आभार

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