Saturday, August 15, 2020

बस्ती

 

 

बरगद का वो पेड बारिश की वो मस्ती l
छुपी थी जिसमें मेरे सपनों की बस्ती ll
 
पंख लगा उड़ गयी उन पलों की मस्ती l
छोड़ गयी पीछे रंजो गम की बस्ती ll

शहर बदल उजड़ गयी नींदों की बस्ती l
छूट गयी दूर कही माँ के हाथोँ की थपकी ll

रोम रोम अंग महक रही गांव की वो मिट्टी l
लौट आ उस पल पुकार रही खेत खलियानों की बस्ती ll
 
नहीं थी खेल खिलौनों की इतनी बस्ती l
पर इन सबों से अच्छी थी वो कागज़ की कश्ती ll
 
नंगे पैरों में थी एक अजब सी मस्ती l
चुभ रही जूतों में काँटों की बस्ती ll
 
वो आबो हवा गांव के चौपाल की मस्ती l
यहाँ ना घर ना दालान सजी हुई पत्थरों की बस्ती ll
 
याद आ रही उन चौबारों गलियों की मस्ती l
काश लौट वापस आ सकता जीने उस बस्ती ll

Friday, August 14, 2020

अजनबी महरबा 

देख मुझे ऑनलाइन तुम ऑफ लाइन हो जाती हो l

डीपी बदलते ही सबसे पहले लाईक कर जाती हो ll


व्हाटस एप स्टेटस हो या फेस बुक l

कमेंट के नाम ठेंगा दिखा जाती हो ll


तुम कहती हो कोई खास रूचि नहीं l

फिर भी मेरी तस्वीरों को डाउनलोड करती जाती हो ll


भूल गयी तुम टेक्नोलॉजी ने युग बदल डाली हैं l

प्रोफाइल विजिट की ईमेल तुरंत मुझको पंहुचा जाती हैं ll


कैसे निहारु तुझे ऐ अजनबी महरबा l

तूने अपनी डीपी में भी तस्वीर मेरी जो लगा डाली हैं ll

Wednesday, August 12, 2020

कहानी

कहानी अपनी कुछ कुछ मिलती जुलती सी है l

इश्तिहारों से सजी जैसे कोई जुगलबंदी सी हैं ll


पर एकबारगी गिरवी क्या रख दिये l 

डैने जैसे फड़फड़ाना ही भूल गये  ll


निशान गहरे सजे थे तन गलियारों में l

निशां लम्बी थी खोये हुए मझधारों में ll


दर्पण भी पहचानना भूल गयी l 

घेर लिया उत्कंठि ज्वालाओं ने ll 


बेदखल हूँ क्षतिज के हर अरमानों से l

मौन स्तब्ध हूँ अपने ही साये से ll


तू भी निःशब्द जकड़ी जंजीरों में l

टिमटिमा रही हो जैसे मज़बूरी में ll


एक सहमी चीत्कार हैं अपनी बंदगानी में l

मिलती जुलती सी फ़रियाद हैं तेरी मेरी कहानी में ll

Tuesday, August 11, 2020

शुन्य

चाहा था एक रोज समेट लूँ दुनिया सारी l

चाहत अब बस हैं इतनी सी समेट लूँ अपनी साँसे सारी ll

 

वेदना सृजन श्राप सी लगने लगी l

कष्ट मृदु वरदान सी लगने लगी ll

 

अल्प हैं राह फरियाद के पड़ाव की l

संख्या तो बस हैं उम्र लिहाज की ll

 

हुनर कमी थी शायद परवान के कुर्बान में l

सजा मेरी थी रजा उसकी ना थी इस दरखास्त में ll

 

ख्वाईश बस एक ही बची हैं l

कह रहा हूँ दिलों अरमान से ll

 

हर बंधन से अब मुक्त हो जाऊ l

शुन्य था शुन्य में मिल जाऊ ll


छोड़ कारवाँ ध्यान मग्न काम में l

गुजर जाऊ दहलीज के इस मुकाम से ll 


शुन्य था शुन्य में मिल जाऊ l

गुजर जाऊ दहलीज के इस मुकाम से ll