हस्तरेखाओं का जन्मकुंडली से मिलान गुनाह बना दिया ll
अनबुझ पहेली बन गयी लकीरें हाथों की l
जन्मकुंडली बन गयी ग्रह नक्षत्र सरीख़ों सी ll
उलझ गयी जीवन रेखा दो पाटों बीच सी l
सलवटें उभर आयी माथे ललाटों बीच सी ll
कैसे हरे इसके भ्रम मायाजाल से l
कष्ट निवारण सुझाव मिल रहे चारों नाम से ll
यतीम प्रतीत होने लगे अब नींदों के पीड़ भी l
जल रहे ज्यों ज्यों नीरज रिसने लगे घाव भी ll
एक थी करनी दूसरी कर्मों की लेख l
उकेर लू कुछ अलग लक़ीरों पर लेखनी लेख ll
थाम लू बबंडर नयी उकेरी लकीरों बीच l
बदल दूँ जन्मकुंडली इन लकीरों बीच ll
मिल गयी रौशनी खुल गए चक्षु नीर l
सामंजस्य जम गया कुंडली और लकीरों बीच ll
सुन्दर नज्म।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी
Deleteहौशला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया l
आभार
मनोज