तेरी पर जाने इन दोनों से क्यों जुदा जुदा सी थी ll
एक सहमी हुई ठिठकी सी जिंदगानी थी l
एक ठोकर से टूट गयी कोमल क्यारी थी ll
सुनने को तुझे आतुर हो रहा था मन l
इंतज़ार की लौ में पलकों में टहल रहा था मन ll
बस उस रात सारी रात भींगते रहे हम l
तेरी कहानी सुनने सारी रात जगते रहें हम ll
बेचैन थे उस रात के वो ठहरे हुए पल l
मुनासिब ना थे तेरे खामोश लफ्ज ll
क्या रह गुजर थी डोर एक बंधी थी l
बिखरते अरमानों को समेटने यह रात काफी ना थी ll
पास सिर्फ खंजर सी चुभती टूटी एक आस थी l
मकसद कोई ना था फिर भी एक जिंदगी की तलाश थी ll
समझ ना पाया मैं उन आँखों के तसब्बुर l
अल्फाजों को वयां करने की इजाजत ना थी ll
सैलाब का तूफ़ान लिया सा मंजर था l
प्रतीक टूटने व्याकुल धैर्य किनारा था ll
कहानी उस रात की यही अधूरी रह गयी l
साँसे सारांश सब अजनबी बन गयी ll
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