यूँ तो अक्सर खुद से मिला करता हूँ l
सवाल पर वहीं आकर ठहर जाता हैं ll
कौन हूँ मैं प्रतिबिंब हूँ या कोई परछाई हूँ l
या दर्पण में नज़र आये वो सच्चाई हूँ ll
क्यों रातों को कभी जुगनू सा चमकता हूँ l
क्यों कभी अपनी चमक से डरता हूँ मैं ll
मशवरा दिया पल पल के इम्तिहानों ने l
तलाशों उतर मयकदे के द्वारों पे ll
बदल रहमत अँगार शहद से ऐसे महकेंगें l
जाम के हर सुरूर में सिर्फ मैं ही मैं छलकेंगें ll
खुदा नाचीज़ होगा ठहरा हुआ पल होगा l
हर प्यालों के घूँट में गुजरा हुआ पल होगा ll
हो फासलों से रूबरू आवेग जो चला l
खुद की पहचान में खुद से दूर हो चला ll
लूट गया इन राहों पे मैं काफ़िर बन के l
निगल गया मशवरा मुसाफ़िर बन के ll
सवाल पर वहीं आकर ठहर जाता हैं ll
कौन हूँ मैं प्रतिबिंब हूँ या कोई परछाई हूँ l
या दर्पण में नज़र आये वो सच्चाई हूँ ll
क्यों रातों को कभी जुगनू सा चमकता हूँ l
क्यों कभी अपनी चमक से डरता हूँ मैं ll
मशवरा दिया पल पल के इम्तिहानों ने l
तलाशों उतर मयकदे के द्वारों पे ll
बदल रहमत अँगार शहद से ऐसे महकेंगें l
जाम के हर सुरूर में सिर्फ मैं ही मैं छलकेंगें ll
खुदा नाचीज़ होगा ठहरा हुआ पल होगा l
हर प्यालों के घूँट में गुजरा हुआ पल होगा ll
हो फासलों से रूबरू आवेग जो चला l
खुद की पहचान में खुद से दूर हो चला ll
लूट गया इन राहों पे मैं काफ़िर बन के l
निगल गया मशवरा मुसाफ़िर बन के ll
बहुत सुंदर रचना। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteiwillrocknow.com
आदरणीय नीतीश जी
Deleteआपका शुक्रिया
आभार
मनोज
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3729 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आदरणीय दिलबाग जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका शुक्रिया
आभार
मनोज
लूट गया इन राहों पे मैं काफ़िर बन के l
ReplyDeleteनिगल गया मशवरा मुसाफ़िर बन के
आपका शुक्रिया
Deleteआभार
मनोज
आदरणीय शास्त्री जी
ReplyDeleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका शुक्रिया
आभार
मनोज