इस ईद बस एक फरियाद हैं मेरी
खुदा नज़रें इनयाते कर दे थोड़ी
चाँद नज़र आ जाए मेरी भी सर जमीं
नमाज़ ईद की अदा कर दूँ उसकी सर जमीं
अज़ान बन गूँज उठे हर इबादत मेरी
निहारु जब आसमां दुआ कबूल हो मेरी
रस्म निभाऊ गले मिल उस चाँद की हथेली
दस्तूर रिवाज बन जाए हबीबी की ईदी
सजदा उस आफताब का महकता रहे
सरके जो हिजाब तो महताब निखरता रहे
बस वो छुपा चाँद जो नजर आ जाए
हर रोज़ नमाज़ अदा कर दूँ उस ईद की खुशी
खुदा नज़रें इनयाते कर दे थोड़ी
चाँद नज़र आ जाए मेरी भी सर जमीं
नमाज़ ईद की अदा कर दूँ उसकी सर जमीं
अज़ान बन गूँज उठे हर इबादत मेरी
निहारु जब आसमां दुआ कबूल हो मेरी
रस्म निभाऊ गले मिल उस चाँद की हथेली
दस्तूर रिवाज बन जाए हबीबी की ईदी
सजदा उस आफताब का महकता रहे
सरके जो हिजाब तो महताब निखरता रहे
बस वो छुपा चाँद जो नजर आ जाए
हर रोज़ नमाज़ अदा कर दूँ उस ईद की खुशी
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (27-05-2020) को "कोरोना तो सिर्फ एक झाँकी है" (चर्चा अंक-3714) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया
आभार
मनोज