नफरतों के बाजार में मिला ना कोई कद्रदान l
खरीद सके जो इस तन्हा दिल के पैगाम ll
ख्वाईश हैं सौदागर मिले कोई ऐसा नायाब l
मेहताब बन निखर आये दिलों के अरमान ll
हालात ने पहरे लगाये हुए संवादों पर आय l
ताले पड़ जड़ गए जुबाँ के प्यालों पर आय ll
बिन कड़वाहट रिश्तों में दूरियाँ ऐसी बन आयी l
परछाई अपनी भी दस क़दम दूर खड़ी नज़र आयी ll
प्रतिलिपि फिर खोजी आफ़ताब के पास l
रहनुमा बन रूह उतर आये इसकी आवाज़ ll
महरूम ना हो कभी रिश्तें भी दूरियों के दरम्यां l
महफ़िल ओर मुखर आये बेक़रार धड़कनों के पास ll
ढलती साँझ नकाब के पीछे छुपी मुस्कान l
क़त्ल कर दिल का खरीद लिए सारे पैगाम ll
वो काफिर था या रहगुजर बेचैन थे नयनों के तार l
जल गयी चिंगारी बुझ गए जुल्मों सितम के तार ll
आँधियों के मेले में साये को मिल गया आकार l
हमसफ़र बन मिल गया दिल को जैसे कोई परवरदिगार ll
खरीद सके जो इस तन्हा दिल के पैगाम ll
ख्वाईश हैं सौदागर मिले कोई ऐसा नायाब l
मेहताब बन निखर आये दिलों के अरमान ll
हालात ने पहरे लगाये हुए संवादों पर आय l
ताले पड़ जड़ गए जुबाँ के प्यालों पर आय ll
बिन कड़वाहट रिश्तों में दूरियाँ ऐसी बन आयी l
परछाई अपनी भी दस क़दम दूर खड़ी नज़र आयी ll
प्रतिलिपि फिर खोजी आफ़ताब के पास l
रहनुमा बन रूह उतर आये इसकी आवाज़ ll
महरूम ना हो कभी रिश्तें भी दूरियों के दरम्यां l
महफ़िल ओर मुखर आये बेक़रार धड़कनों के पास ll
ढलती साँझ नकाब के पीछे छुपी मुस्कान l
क़त्ल कर दिल का खरीद लिए सारे पैगाम ll
वो काफिर था या रहगुजर बेचैन थे नयनों के तार l
जल गयी चिंगारी बुझ गए जुल्मों सितम के तार ll
आँधियों के मेले में साये को मिल गया आकार l
हमसफ़र बन मिल गया दिल को जैसे कोई परवरदिगार ll
बेहतरीन गीतिका
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी
Deleteसर हौशला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से धन्यवाद
आभार
मनोज
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05 -5 -2020 ) को "कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी जी
Deleteमेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद
आभार
मनोज
वाह !लाजवाब 👌
ReplyDeleteआदरणीया अनीता जी
Deleteरचना पंसद करने के लिए धन्यवाद
आभार
मनोज
आदरणीया अनुराधा जी
ReplyDeleteरचना पंसद करने के लिए धन्यवाद
आभार
मनोज