कोरी रस्म बन ना रह जाए
मधुर मिलन की आस
खनकती चूड़ियों के बोल झाँझर की तान
घोल रही मधुमास में मिश्री की मिठास
बिंदिया लिख रही ग़ज़ल नयन छेड़ रहे साज
प्रियतम के आने की सजनी जोह रही बाट
क्यों देर हो रही प्रियतम को आज
ना कोई संदेश ना कोई पैगाम
क्या पिया छोड़ चले गए लिख अधूरी मनुहार
बढ़ रहा धड़कनों का साज
निहारे कभी दर्पण कभी मेहंदी लगे हाथ
इस बीच गूँज उठी शहनाई
आ पहुँचे साजन तोरण द्वार
सज गयी डोली सजनी हुई विदा को तैयार
भुला दुःस्वप्न विचार
बन दुल्हन चल दी प्रियतम के द्वार
मधुर मिलन की आस
खनकती चूड़ियों के बोल झाँझर की तान
घोल रही मधुमास में मिश्री की मिठास
बिंदिया लिख रही ग़ज़ल नयन छेड़ रहे साज
प्रियतम के आने की सजनी जोह रही बाट
क्यों देर हो रही प्रियतम को आज
ना कोई संदेश ना कोई पैगाम
क्या पिया छोड़ चले गए लिख अधूरी मनुहार
बढ़ रहा धड़कनों का साज
निहारे कभी दर्पण कभी मेहंदी लगे हाथ
इस बीच गूँज उठी शहनाई
आ पहुँचे साजन तोरण द्वार
सज गयी डोली सजनी हुई विदा को तैयार
भुला दुःस्वप्न विचार
बन दुल्हन चल दी प्रियतम के द्वार
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिया आपका बहुत शुक्रिया
आभार
मनोज