धुंध बिखर गयी सपनों पे सारे
पहरे लगा गए तम के अँधियारे
सिफारिश करूँ अब आफताब से कैसे
छिप गए तारे सारे अमावस के घोरे
जज्बात कैद हो रह गए सीने मेरे
जाहिर करूँ अब कैसे अरमानों के पहरे
पर कट गए परिंदों के जैसे
हालात हो गए मुजरिम जैसे
कैद हो गए साँझ सबेरे
पाबंदी लग गयी पलकों के आगे
बदल गए जिंदगी के माने
बदल गए जिंदगी के माने
पहरे लगा गए तम के अँधियारे
सिफारिश करूँ अब आफताब से कैसे
छिप गए तारे सारे अमावस के घोरे
जज्बात कैद हो रह गए सीने मेरे
जाहिर करूँ अब कैसे अरमानों के पहरे
पर कट गए परिंदों के जैसे
हालात हो गए मुजरिम जैसे
कैद हो गए साँझ सबेरे
पाबंदी लग गयी पलकों के आगे
बदल गए जिंदगी के माने
बदल गए जिंदगी के माने
वाह...बहुत खूब।
ReplyDeleteसार्थक रचना।
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिया आपका बहुत शुक्रिया
आभार
मनोज