Wednesday, April 15, 2020

क्षितिज

प्रचंड प्रबाल हैं इतना वेग

हिल रहा हिमालय का तेज़

अँगार बन बरस रहा

जल प्रपात कोहराम का सेज़

भष्मीभूत हो भभक रहे

अरण्य नगर और खेत

भीभिषका लाली दानव रूप धरे 

तटस्थ खड़ा ज्वालामुखी यमदूत बने

पसरा मातम कायनात रौद्र रूप धरे

अग्रसर सृष्टि इंतकाल मुख खड़े

पटाक्षेप तांडव लहरें

कर अस्त भाग्य कर्म

मरणासन्न शैया क्षितिज ओर चले 

क्षितिज ओर चले

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3673 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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    1. आदरणीय दिलबाग जी
      मेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
      आभार
      मनोज

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