प्रचंड प्रबाल हैं इतना वेग
हिल रहा हिमालय का तेज़
अँगार बन बरस रहा
जल प्रपात कोहराम का सेज़
भष्मीभूत हो भभक रहे
अरण्य नगर और खेत
भीभिषका लाली दानव रूप धरे
तटस्थ खड़ा ज्वालामुखी यमदूत बने
पसरा मातम कायनात रौद्र रूप धरे
अग्रसर सृष्टि इंतकाल मुख खड़े
पटाक्षेप तांडव लहरें
कर अस्त भाग्य कर्म
मरणासन्न शैया क्षितिज ओर चले
क्षितिज ओर चले
हिल रहा हिमालय का तेज़
अँगार बन बरस रहा
जल प्रपात कोहराम का सेज़
भष्मीभूत हो भभक रहे
अरण्य नगर और खेत
भीभिषका लाली दानव रूप धरे
तटस्थ खड़ा ज्वालामुखी यमदूत बने
पसरा मातम कायनात रौद्र रूप धरे
अग्रसर सृष्टि इंतकाल मुख खड़े
पटाक्षेप तांडव लहरें
कर अस्त भाग्य कर्म
मरणासन्न शैया क्षितिज ओर चले
क्षितिज ओर चले
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3673 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आदरणीय दिलबाग जी
Deleteमेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
आभार
मनोज