कभी पलकें छू जाती हैं
कभी नींदें चुरा ले जाती हैं
यादेँ तेरी बड़ी बेईमान हैं
खुली आँखों में सपनें संजो जाती हैं
कभी झपकी कभी थपकी
खट्टी मीठी यादों के ऐसे पल बुन जाती हैं
कभी नींदों में मुस्कराता हूँ
कभी करवटों में तकिये से लिपट जाता हूँ
घरौंदे यादों के ऐसे मचल जाते हैं
मैं फिर से बचपन में लौट आता हूँ
कुछ अध लिखे खतों की सोफ़ियाँ
कुछ बिछड़े जमाने की दूरियाँ
चाँद में आज भी तेरा ही अक्स बना
यादों की लोरियाँ गुनगुना जाती हैं
इसी बहाने नींदों में ही सही
मुलाक़ात अपनी मुकम्मल करा जाती हैं
भुला दस्तूर अध खुली पलकों का
यादें तेरी रात महका जाती हैं
छलकती पलकें आज भी तस्वीर
तेरी यादों की ही बुनती जाती हैं
तेरी यादों की ही बुनती जाती हैं
कभी नींदें चुरा ले जाती हैं
यादेँ तेरी बड़ी बेईमान हैं
खुली आँखों में सपनें संजो जाती हैं
कभी झपकी कभी थपकी
खट्टी मीठी यादों के ऐसे पल बुन जाती हैं
कभी नींदों में मुस्कराता हूँ
कभी करवटों में तकिये से लिपट जाता हूँ
घरौंदे यादों के ऐसे मचल जाते हैं
मैं फिर से बचपन में लौट आता हूँ
कुछ अध लिखे खतों की सोफ़ियाँ
कुछ बिछड़े जमाने की दूरियाँ
चाँद में आज भी तेरा ही अक्स बना
यादों की लोरियाँ गुनगुना जाती हैं
इसी बहाने नींदों में ही सही
मुलाक़ात अपनी मुकम्मल करा जाती हैं
भुला दस्तूर अध खुली पलकों का
यादें तेरी रात महका जाती हैं
छलकती पलकें आज भी तस्वीर
तेरी यादों की ही बुनती जाती हैं
तेरी यादों की ही बुनती जाती हैं
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-04-2020) को "मुस्लिम समाज को सकारात्मक सोच की आवश्यकता" ( चर्चा अंक-3672) पर भी होगी। --
ReplyDeleteसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना को अपने मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज