देख मानव के नित नये जैविक हथियारों के आविष्कार
कायनात भी स्वतः आ पहुँची नष्ट होने के कगार
बिन चले एक भी तोप , गोली और तलवार
हर ओर लग गये पर्वतों से ऊपर लाशों के अम्बार
रास ना आया प्रकृति को अहंकारी मानव का
चेतना शून्य वर्चस्व का यह अंदाज़
मूक दर्शक बन रह गया बस ख़लीफ़ा
नेस्तनाबूद हो रही सम्पूर्ण सृष्टि आज
सन्नाटा मरघट का ऐसा पसरा चहुँ ओर
जल रही चिताओं की होली बुझा गयी जीवन लौ
शिथिल पड़ गयी मानवता विनाश लीला वेग को
रो उठी कुदरत देख अपनी ही रचना तांडव आकार
प्रतिघात कर प्रहार कर सभ्यता के सीने को
अपने स्वार्थ को कलंकित दृष्टि विहीन मानव ने
जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को
जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को
कायनात भी स्वतः आ पहुँची नष्ट होने के कगार
बिन चले एक भी तोप , गोली और तलवार
हर ओर लग गये पर्वतों से ऊपर लाशों के अम्बार
रास ना आया प्रकृति को अहंकारी मानव का
चेतना शून्य वर्चस्व का यह अंदाज़
मूक दर्शक बन रह गया बस ख़लीफ़ा
नेस्तनाबूद हो रही सम्पूर्ण सृष्टि आज
सन्नाटा मरघट का ऐसा पसरा चहुँ ओर
जल रही चिताओं की होली बुझा गयी जीवन लौ
शिथिल पड़ गयी मानवता विनाश लीला वेग को
रो उठी कुदरत देख अपनी ही रचना तांडव आकार
प्रतिघात कर प्रहार कर सभ्यता के सीने को
अपने स्वार्थ को कलंकित दृष्टि विहीन मानव ने
जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को
जुदा कर दिया सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परछाई को
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (02-04-2020) को "पूरी दुनिया में कोरोना" (चर्चा अंक - 3659) पर भी होगी।
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मित्रों!
कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं भी नहीं हो रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteमेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज
मार्मिक सृजन ,सादर नमस्कार आपको
ReplyDeleteआदरणीया कामिनी जी
Deleteतहे दिल से आपका धन्यवाद
आभार
मनोज
सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी
Deleteतहे दिल से धन्यवाद
आभार
मनोज