ध्वंश हो गयी ध्वनि बेला
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय
अपने अभिमान गुरुर में भूल मर्यादा रेखा को
लहूलुहान छलनी कर सीना सृजन दाता को
लिख दिया मानव कुंठा ने नया विपत्ति अध्याय
रूठ गयी कुदरत अपनी ही बेमिशाल रचना के
बिगड़ते बिखरते अजब गजब पैमानों से आज
नाग बन डस गये मानव को
उसके ही विनाशकारी हथियार आय
लग गया ग्रहण सम्पूर्ण सृष्टि पर
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कुदरत के नए तांडव गांडीव से आज
अभिलेख ऐसा लिखा मानव ने
कायनात अपनी ही रूह से महरूम होती जाय
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
विलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय
अपने अभिमान गुरुर में भूल मर्यादा रेखा को
लहूलुहान छलनी कर सीना सृजन दाता को
लिख दिया मानव कुंठा ने नया विपत्ति अध्याय
रूठ गयी कुदरत अपनी ही बेमिशाल रचना के
बिगड़ते बिखरते अजब गजब पैमानों से आज
नाग बन डस गये मानव को
उसके ही विनाशकारी हथियार आय
लग गया ग्रहण सम्पूर्ण सृष्टि पर
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
कायनात के इन पूर्णविरामों से आज
सुन्दर और सामयिक।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी
Deleteरचना पसंद करने हेतु आपका शुक्रिया
आभार
मनोज
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा शनिवार(२८-०३-२०२०) को "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी"( चर्चाअंक -३६५४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आदरणीय अनीता जी
Deleteमेरी रचना को अपना मंच प्रदान करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज
सामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी
Deleteधन्यवाद
आभार
मनोज
आदरणीय सुमन जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज
आदरणीया/आदरणीय आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-२ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete'बुधवार' ०१ अप्रैल २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य"
https://loktantrasanvad.blogspot.com/2020/04/blog-post.html
https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
आदरणीय
Deleteमेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज
प्रलय काल बन गयी सम्पूर्ण सृष्टि
ReplyDeleteविलुप्त हो रहे सारे नैसगर्गिक भाव
वरदान थी जो प्रकृति अब तलक
दफ़न कर नए उत्थान की बात
अभिशाप नरसंहार बेरहम बनती जाय
बहुत ही सुन्दर समसामयिक लाजवाब सृजन
वाह!!!
आदरणीया सुधा जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज