सहम जाती हूँ परछाई से भी अपनी
नुमाईस लगा रखी हैं अंधकार ने इतनी
शुष्क लबों को डरा रही
आहट पद्चापों की अपनी
कितनी व्यतिथ यह जिंदगानी हैं
हर गली चौराहों नुक्कड़ पे
शाम ढले यही कहानी हैं
वहशी दरिंदों की नजरों ने पहनी
हैवानियत हवस की लाली हैं
चीरती कोई चीख वीरान सन्नाटे को
हृदयगति एक पल को ठहरा जाती हैं
कितनी बेबस बना दिया कुनबे ने
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
नुमाईस लगा रखी हैं अंधकार ने इतनी
शुष्क लबों को डरा रही
आहट पद्चापों की अपनी
कितनी व्यतिथ यह जिंदगानी हैं
हर गली चौराहों नुक्कड़ पे
शाम ढले यही कहानी हैं
वहशी दरिंदों की नजरों ने पहनी
हैवानियत हवस की लाली हैं
चीरती कोई चीख वीरान सन्नाटे को
हृदयगति एक पल को ठहरा जाती हैं
कितनी बेबस बना दिया कुनबे ने
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
बहुत सही बात है
ReplyDeleteअच्छी रचना।
नयी रचना पढ़े- सर्वोपरि?
आदरणीय रोहितास जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२१-०३-२०२०) को "विश्व गौरैया दिवस"( चर्चाअंक -३६४७ ) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आदरणीय अनीता जी
Deleteमेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
सुंदर और सार्थक पंक्तियाँ।
ReplyDeleteआदरणीय नितीश जी
Deleteमेरी रचना को पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
बहुत सुन्दर और सामयिक रचना।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी
Deleteहौशला अफजाई और रचना पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
अपने ही साये से सहमी रहती हर नारी हैं
ReplyDeleteबहुत सटीक सुन्दर समसामयिक सृजन।
आदरणीय सुधा जी
Deleteदीदी तहे दिल से आपका शुक्रिया
आभार
मनोज क्याल
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद औंकार जी
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