Friday, January 31, 2020

याददाश्त

तेरी यादों के चिलमन को छोड़ 

बाक़ी याददाश्त खाली खाली हैं 

ओ रहगुज़र हमसफ़र 

इन आँखों में नींद कम 

तेरे इश्क़ की ख़ुमारी भारी हैं 

किताबों के पुराने सूखे फूलों में 

तेरी यादों की महक आज भी बाकी हैं 

यादों के झरोखे में बस तेरे नूर की ही चाँदनी हैं 

बाकी याददाश्त तो बस खाली खाली हैं 

समझौते हैं कुछ बदनाम राहों के 

किस्से हैं कुछ इश्क़ की गालियारों के 

अरमान फिर भी सजे हैं तेरी ही यादों के 

फरियाद अब ओर नहीं यादों की 

छोड़ तेरी चिलमन को याद नहीं यादों की  

1 comment:

  1. बीते दिनों की कहानी मत पूछ
    रूह तड़पती है एक किरदार के नाम से
    कैसे बीती
    जो जबर्दस्ती बिताई मत पूछ।

    सुंदर लेखन।

    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

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