गीत ग़ज़लों मैं अपनी शामें आबाद करता हूँ
आफ़ताब के सुनहरे नूर को
चाहतों का पैगाम लिखता हूँ
ख्यालों से निकल आँखों में उतर आयी
उस महजबी को सलाम लिखता हूँ
गुले गुलशन एहतराम लिखता हूँ
काफ़िले तारुफ़ के तरानों में
नजरानों की सौगात लिखता हूँ
इन बेजान धड़कनों से
उस पाक ए रूह को फ़रियाद लिखता हूँ
सारी सारी रात करवटों में
खुद से खुद बात करता हूँ
सुरमई छुईमुई उसकी पलकों में
नींदे अपनी तलाश करता हूँ
गीत ग़ज़लों मैं अपनी शामें आबाद करता हूँ
आफ़ताब के सुनहरे नूर को
चाहतों का पैगाम लिखता हूँ
ख्यालों से निकल आँखों में उतर आयी
उस महजबी को सलाम लिखता हूँ
गुले गुलशन एहतराम लिखता हूँ
काफ़िले तारुफ़ के तरानों में
नजरानों की सौगात लिखता हूँ
इन बेजान धड़कनों से
उस पाक ए रूह को फ़रियाद लिखता हूँ
सारी सारी रात करवटों में
खुद से खुद बात करता हूँ
सुरमई छुईमुई उसकी पलकों में
नींदे अपनी तलाश करता हूँ
गीत ग़ज़लों मैं अपनी शामें आबाद करता हूँ
अच्छा है।
ReplyDeleteआदरणीय
Deleteजोशी जी शुक्रिया
आभार
मनोज