गुँथ रहा हूँ ख्यालों की माला
कही अनकही अहसासों की गाथा
ऊपर गागर नीचे सागर
भँवर में अटकी सपनों की डागर
संसय भ्रमित ख़ोज रहा मन
मरुधर बीच अमृत नागर
आत्मसात करलूँ हर तारण
बैठू पूनम की रात मधुशाला जाकर
तृप्त हो जाऊ इस बैतरणी को पाकर
रस वो नहीं रुद्राक्ष तुलसी पिरोकर
बने श्रृंगार गजरे तेरे ख्याल पिरोकर
खोल पिटारा बैठा हूँ
निकल आये कही तरुवर में सागर
चहक उठे यादों की बगियाँ
भर आये नए सपनों के गागर
नए सपनों के गागर
कही अनकही अहसासों की गाथा
ऊपर गागर नीचे सागर
भँवर में अटकी सपनों की डागर
संसय भ्रमित ख़ोज रहा मन
मरुधर बीच अमृत नागर
आत्मसात करलूँ हर तारण
बैठू पूनम की रात मधुशाला जाकर
तृप्त हो जाऊ इस बैतरणी को पाकर
रस वो नहीं रुद्राक्ष तुलसी पिरोकर
बने श्रृंगार गजरे तेरे ख्याल पिरोकर
खोल पिटारा बैठा हूँ
निकल आये कही तरुवर में सागर
चहक उठे यादों की बगियाँ
भर आये नए सपनों के गागर
नए सपनों के गागर
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