सिलसिला बातों का थम गया
दूर तुम क्या गए
दौर मुलाकातों का रुक गया
झरोखें के उस आट से
चाँद के उस दीदार को
दिल ए सकून की तलाश में
खो गया तेरी गलियों की राहों में
तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को
छलकते दर्द की परछाई को
छिपा अरमानों की बेकरारी को
जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को
हाथ छूटा मंजर टूटा
दूरियाँ चली आयी दोनों के पास
मुक़ाम ख्यालों के ठहर गए
पत्ते बदल गए रिश्तों के साथ
दूर तुम क्या गए
दौर मुलाकातों का रुक गया
झरोखें के उस आट से
चाँद के उस दीदार को
दिल ए सकून की तलाश में
खो गया तेरी गलियों की राहों में
तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को
छलकते दर्द की परछाई को
छिपा अरमानों की बेकरारी को
जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को
हाथ छूटा मंजर टूटा
दूरियाँ चली आयी दोनों के पास
मुक़ाम ख्यालों के ठहर गए
पत्ते बदल गए रिश्तों के साथ
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आदरणीय स्वेता जी
Deleteमेरी रचना लिंक करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
हाँ अब तो रिश्ते भी सौसम की तरह बदल जाते हैं -क्या कहा जाय किसी को
ReplyDeleteआदरणीय प्रतिभा जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
तेरी बिदाई को मेरी रुसवाई को
ReplyDeleteछलकते दर्द की परछाई को
छिपा अरमानों की बेकरारी को
जोगी बन आया मैं दिल की तन्हाई को
वाह!!!
क्या बात...
आदरणीय सुधा जी
Deleteमेरी रचना पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद
आभार
मनोज क्याल
वाह!!!
ReplyDeleteक्या बात...