साँसों की गुफ्तगूँ में
गुस्ताख़ी नजरों की हो गयी
खुले केशवों की लटों में
अरमानों की ताबीर खो गयी
देख चाँद के शबाब को
आयतें खुदगर्ज अपने आप हो गयी
सिंदूरी साँझ की लालिमा में लिपटी
आँचल के आगोश में सिमटी
तारुफ़ फ़िज़ा के लावण्य पर फ़ना हो गयी
निकल सपनों के ख़्यालों की जागीर से
चाँदनी नूर बन दिल से रूबरू हो गयी
हौले हौले तहरीर लबों की दस्तक ऐसी दे गयी
गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी
गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी
गुस्ताख़ी नजरों की हो गयी
खुले केशवों की लटों में
अरमानों की ताबीर खो गयी
देख चाँद के शबाब को
आयतें खुदगर्ज अपने आप हो गयी
सिंदूरी साँझ की लालिमा में लिपटी
आँचल के आगोश में सिमटी
तारुफ़ फ़िज़ा के लावण्य पर फ़ना हो गयी
निकल सपनों के ख़्यालों की जागीर से
चाँदनी नूर बन दिल से रूबरू हो गयी
हौले हौले तहरीर लबों की दस्तक ऐसी दे गयी
गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी
गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी
शानदार.
ReplyDeleteख़ुदा से आगे
रोहितास जी
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया
सादर
मनोज
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३ -१०-२०१९ ) को " गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती " (चर्चा अंक- ३४८७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जी बहुत उम्दा सृजन।
ReplyDelete