Friday, October 11, 2019

गुफ्तगूँ

साँसों की गुफ्तगूँ में

गुस्ताख़ी नजरों की हो गयी

खुले केशवों की लटों में

अरमानों की ताबीर खो गयी

देख चाँद के शबाब को

आयतें खुदगर्ज अपने आप हो गयी

सिंदूरी साँझ की लालिमा में लिपटी

आँचल के आगोश में सिमटी

तारुफ़ फ़िज़ा के लावण्य पर फ़ना हो गयी

निकल सपनों के ख़्यालों की जागीर से

चाँदनी नूर बन दिल से रूबरू हो गयी

हौले हौले तहरीर लबों की दस्तक ऐसी दे गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी

गुफ्तगूँ साँसों की साँसों से हो गयी