लिख रहा हूँ नज़्म तेरी यादों के शाम
महकी महकी सोंधी साँसों के नाम
सागर की कश्ती बाँहों के पास
उड़ रहा आँचल निकल रहा आफताब
शरमा रही लालिमा झुक रहा आसमां
बंद पलकों के शबनमी दामन ने
थाम लिया लबों के अनकहे लफ्जों का साथ
निखर रही हिना छुप रहा महताब
खोया रहू ता जीवन तेरे केशवों की छाँव
बीते हर सुरमई शाम तेरी एक नयी नज्म के नाम
मेहरबां उतार तू अब नक़ाब का लिहाज
समा जा मेरी रूह के आगोश में
बन मेरी धड़कनों का अहसास
मैं लिखता रहूँ नज्म बस तेरी यादों के नाम
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.